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भारतीय राजनीति के लिए इससे स्याह पक्ष क्या हो सकता है. कोई चुनाव आते ही खरीद-फरोख्त, कालाधन, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, अपराध व बदजूबानी सहित कई विषय आम हो जाते हैं. शासन-प्रशासन की आड़ में ये गैर कानूनी मसले जैसे-तैसे कर अंजाम पर पहुंचते हैं. कुछ मामले पर शिंकजा भी कसता है पर वो नाम मात्र के होते हैं.
बीते दिनों प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय राजनीति में गुंडें, माफिया, तस्करों और घोटालेबाजों की भरमार है. ये अपने रसूख और आतंक के दम पर लोकतंत्र की सुंदर इमारत में सेंधमारी कर रहे हैं. इससे ना सिर्फ लोकतंत्र का बुनियादी ढ़ांचा कमजोर हो रहा है बल्कि, इनके आतंक और डर से नागरिक अपने हक और अधिकार से विमुख हो रहे हैं. इस हालात में इन नागरिकों को जो भी मिल जाता है यथा योजना का लाभ व सरकारी संसाधन से काम चला लेते हैं. जबकि, योजनाओं की सौ फीसदी लाभ या मूलभूत सुविधाएं जैसे- सड़क, पेयजल, अस्पताल, रोजगार व शिक्षा आदि के लिए अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाते हैं. क्योंकि इनको अपनी जान गवाने का डर रहता है.
बहरहाल, इस रिपोर्ट में केंद्रीय मंत्री, भूतपूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान मुख्यमंत्री, सांसद व विधायक के बारे में विस्तार से रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसमें उक्त कई लोगों पर हत्या, घोटला, शोषण, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने, मारपीट व गैंगवार जैसी जघन्य अपराधिक मामलें न्यायालय में चल रहे हैं.
- रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में 587, गुजरात -113, कर्नातक -94, उत्तराखंड- 21, हिमाचल प्रदेश -16, असोम-36, उत्तर प्रदेश-88, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना-91, पंजाब -01, हरियाणा -06, मध्य प्रदेश में 33 मामले न्यायालय में चल रहे हैं. ये मामले उक्त प्रदेशों के केंद्रीय मंत्री, भूतपूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान मुख्यमंत्री, सांसद व विधायक पर चल रहे है.
इसमें रिपोर्ट में बिहार और केंद्र शासित प्रदेशों का नाम नहीं शामिल है. इसके अलावा मणिपुर, मिजोरम, मेघालय सहित अन्य राज्यों के आंकडे उपलब्ध नहीं हो सके हैं. कुल मिलाकर 1581 जघन्य अपराधिक मामलों की जानकारी सरकार ने उपलब्ध कराई है.
ये आंकडे भारतीय राजनीति के स्याह पक्ष की एक छोटी सी नजीर है. साथ ही आंकडेÞ भारतीय लोकतंत्र के उस विद्रूप चेहरे को भी दिखाते हैं. जिनसे कमोबेश देश का हर नागरिक जानते हुए भी कतराकर निकल जाना में ही भलाई समझता है. इन गैर कानूनी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए संविधान में नियम-कानून बनाए गए हैं. चुनाव आयोग की पैनी नजर भी इनपर रहती है. फिर भी इस तरह के विचार करने वाले चिंताजनक नतीजें आ रहे हैं.
हवाला, कालाबाजार, हत्या, घोटाला, शोषण, गैंगवार आदि के आरोपी अपने रसूख, जुगाड़ और बाहुबल के दम पर वे संवैधानिक नियमों को ताक पर रखकर सत्ता का खेल खेलते हैं. इस खेल में येन-केन-प्रकारेण लोकतंत्र के संवैधानिक पदों पर आसीन हो जाते हैं. इससे न सिर्फ नागरिकों नुकसान होता है बल्कि चुहुंमुखी व आधुनिक विकास की चक्रीय प्रक्रिया बाधित होती है.
समय बदल रहा है. शिक्षा के स्तर में संतोषजनक बढ़ोत्तरी हो हो रही है. संचार सहित अन्य माध्यमों से पारदर्शी सूचनाओं व अधिकारों की बातें आम लोगों तक पहुंच रही है. लिहाजा, अब वह समय आ गया है कि नागरिक देश हित को सर्वोपरी रखकर अपराधिक, दबंग और दिवालिया छवि वाले नेताओं को बेझिझक नकार दें. साफ-सुथरे छवि और भरोसेमंद नेतृत्व के हाथ में अपने भविष्य के विकास की कमान दें.
Photo credit: Jansatta
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