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हर अभियान को पूरा करने के पहले कुछ ख़ास रणनीतियाँ बनानी पड़ती है। भारत सरकार की फ्लैगशिप परियोजना 'स्वच्छ भारत अभियान' पूरे देश में जोश-ओ-खरोश के साथ शुरू की गयी। मगर इसके उद्देश्य को कुछ ही जिले पूरे कर पाए, शेष भारत अभी भी ढाक के तीन पात बना हुआ है। शेष जगह इस योजना के क्रियान्वयन हेतु कुछ खास रणनीतियाँ नहीं बनायी गयी, नतीजतन इस योजना का भी हश्र बाक़ी योजनाओं जैसा हुआ, मने योजना असफ़ल हो गयी।
वही दूसरी ओर कुछ ऐसे भी कर्मठ-तकनीकी लोग थे, जिन्होंने योजना के तहत तय किये गए लक्ष्यों से आगे भी मुक़ाम हासिल कर लिया। ऐसे ही एक सज्जन है इंदौर(मध्य प्रदेश) के कलेक्टर पी. नरहरि।
नरहरि जी ने अपने जिले में 'स्वच्छ भारत अभियान' के क्रियान्वयन के लिए ढर्रे से हटकर कुछ अलहदा सा करने का प्रयास किया। उन्होंने अभियान के मुताबिक रणनीतियां बनायीं, ये रणनीति बेहद नवोन्मेषी थी।
उनके सामने 312 ग्राम पंचायतों और 600 से अधिक गाँवों को स्वच्छ बनाने का पहाड़ सा लक्ष्य था। उन्होंने स्वच्छता के लिए अधिक से अधिक 'शौचालय निर्माण' के बजाय लोगों में 'व्यवहार बदलाव' पर जोर दिया था। क्योंकि उन्हें पता था कि लोगबाग घर में शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच को जाते है क्योंकि इसमें वो अपना आनंद देखते है और इसी आनंद प्रदायी स्टीरियोटाइप को बदलना है।
इसके लिए उन्होंने पंचायत के सीओ के साथ मिलकर कुछ खास रणनीतियों पर काम करना शुरू किया। काफी रिसर्च की , तब उन्होंने पाया कि ग्रामीण लोग सुबह 4 बजे से 5:30 तक और रात्रि में दिन ढलने से 8:30 बजे तक शौच के लिए बाहर जाते है। मने कि 10 से 5 के ऑफिस ऑवर में वो कभी भी इस योजना को सफल नहीं बना सकते। इसलिए उन्होंने सुबह 4 बजे से ही इस पर काम करने का फ़ैसला किया। इसके लिए वो हफ्ते में एक दिन स्वयं किसी गाँव जाते और लोगों को वहां खुले में शौच के विरुद्ध जागरूक करते।
उन्होंने खुले में शौच करने वाली जगह को लक्ष्यित किया, ताकि सारे के सारे खुले में मल त्याग करने वाले लोगों से वास्तविक समय में मिल सकें। इसके अलावा उन्होंने जन प्रतिनिधि, अन्य अधिकारियो को भी अपने इस जागरूकता मिशन का हिस्सा बना लिया ताकि योजना समावेशी रूप से संचालित हो और परिणाम जल्दी दें। नरहरि जी स्वयं भी कहते है कि अधिकारियो को अपने कामों/अभियानों में जन प्रतिनिधि को भी शामिल करना चाहिए क्योंकि उनकी मॉस अपील होती है और वो लोगों से कनेक्ट भी होते है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने तीन दल बनाये; निगरानी दल, प्रोत्साहित करने वाली मंडली और वानर सेना। निगरानी दल में गाँव के बड़े-बुजुर्ग और स्वच्छता चैंपियन टाइप लोग रहते थे, जो सुबह-सुबह 4 बजे से 5:30 बजे तक बाहर शौचालय को जा रहे व्यक्तियों से बतियाते, उन्हें जागरूक करते, उन्हें शर्म महसूस कराते। प्रोत्सहित करने वाली मंडली में पूरे जिले से 30-35 लोग थे, जो गाँव-गाँव में जाके लोगों को खुले में मल त्यागने के विरुद्ध जागरूक करते थे।
इन सबसे इतर जिनका काम सबसे अधिक रोचक किन्तु सबसे अधिक फलदायी था, वो वानर सेना है। वानर सेना में छोटे-छोटे बच्चे होते थे, जो शौचालय जा रहे व्यक्तियों का डिब्बा खींचते, उन्हें शर्म महसूस कराते और ये भी बताते कि बाहर शौचालय जाने से क्या हानियां है ?
इसके अलावा उन्होंने शर्म यात्रा भी निकाली। ताकि लोग अपनी कारगुजारियों पे स्वयं शर्मिंदा हो और इस घृणित कार्य को रोक दें। बाद में जब अभियान पूर्णतः सफल हुआ तो गर्व यात्रा भी निकाली।
बमुश्किल 6 से 7 महीने में #इंदौर ग्रामीण खुले में शौच से मुक्त हो गया। अभी भी वो योजना की पूरी मॉनिटरिंग करते है ताकि कही ढीलापोली न हो जाएं। इसके अतिरिक्त स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर ने पांच नम्बर से सीधे पहले नम्बर पर छलांग लगाकर भारत का सबसे स्वच्छ शहर बनने का गौरव प्राप्त किया।
पी.नरहरि जी को ख़ूब सारी शुभकामनाएं।
By - संकर्षण शुक्ला ( दिल हरियर है इनका लिखते है इतना मारक की हिंदी डाकिया के ओपोजिशन वालों के नाक से पानी चुने लगे। )
Photo credit: mpbreaking.in
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