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खामोशी से भरी सुनसान सड़क
कोई मंजिल है या नही
अंधेरी रात में बस यूं ही
मैं चल रही हूँ
ठोकर लगती है
गिरती हूँ उठती हूँ
मंजिल पाने की चाह में
चले जा रही हूँ
मेरे पैर पत्थरो और काटों को
कुचलते हुए आगे बढ़ रहे है
पर पीड़ा की कोई गुंजाइश नहीं।
सब कुछ अंधेरा है
सुनसान सड़क पर
बस मुझे मेरे बढ़ते हुए कदम
महसूस हो रहे है
कोई इंतज़ार नही करता
काली अंधेरी राह में
फिर भी रोज पीछा करती हूँ
मंजिल पाने के लिए
खामोशी से भरी सुनसान सड़क
कोई मंजिल है या नही
By - माया मिश्रा
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