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अगर इस लेख को मैं हिंदी दिवस पर लिखता तो शायद आप लोग इसे जरूर पढ़ते है। मुझे पता नहीं आप लोग अब इसे पढेंगे भी या नहीं पर ये लिखना जरूरी है क्योंकि अगर नहीं लिखा तो मुझ जैसे न जाने कितने लोग हिंदी को आज भी प्यार करेंगे लेकिन हक्कीत इसके एकदम परे है क्योंकि हिंदी आपकी दुश्मन है।
सुना है कि दिल में जो है उसे बोल दो वरना नफरत बढ़ जाती है इसलिए आज मेरे मन में हिंदी के लिए जो भी है मैं उसे कहूंगा।
देश में आज जितने भी हिंदी स्कूल है उन्हें बंद करा देना चाहिए उनके जगह इंग्लिश स्कूल खुलना चाहिए। अब भाई जब हर जगह अंग्रेजी चलेगी तो हिंदी का क्या मतलब और वो एक ठु विषय जो तुम इंग्लिश स्कूल में चलाते हो नाम के वास्ते हिंदी विषय उसको भी बंद कर दो और एक बार फिर इस देश को अंग्रेजो का गुलाम बना दो। वैसे सही कहते है लोग अंग्रेज चले गए पर अंग्रेजी छोड़ गए है और उहे अंग्रेजी अभी तक हम सबका उनका गुलाम बना कर रखी हुई है।
लेकिन ये बात किसी को समझ नहीं आएगी। क्योंकि उनके आंखों में रिबेन कंपनी का चश्मा चढ़ा हुआ है। अगर अंग्रेजी नहीं बोलगे तो उनका स्टेट्स गिर जाएगा। अबे किस स्टेटस के लिए इतना मरे जा रहे हो कभी अपनी मात्र भाषा को भी बोल कर एटीट्यूड दिखाओ। लेकिन नहीं हम लोगो की अंग्रेजी वाली सोच ने न हमारी नजरों में हिंदी बोलने वाले लोगो को तुच्छ बना दिया।
आपको नहीं लगता कि अंग्रेजी न आने की वजह से हमारे देश मे टैलेंट दब रहा है। आज कॉल सेंटर में आप कितनी भी अच्छी हिंदी बोल लो लेकिन आपको इंग्लिश बोलने वाले कि अपेक्षा कम ही इज्जत और पैसे दिए जाएंगे।
इस देश में हिंदी बोलने के नाम पर जब जब किसी को नीचा दिखाया जाता है तो ऐसा लगता है कि हम अब भी आज़ाद नहीं हुए है।
अब ये सोच रहे होंगे कि क्या बैकयती कर रहा है इसको नहीं आती है इंग्लिश तो सबको दोष दे रहा है। तो ये जान लो कि आती है भाई इंग्लिश फर्राटेदार नहीं पर इतनी तो आती है कि किसी का मुँह बन्द कर दे।
कॉरपरेट सेक्टर में अगर आप नौकरी लेने जाएंगे न आपके पास कितना भी टैलेंट हो अगर आपको अंग्रेजी नहीं आती है ना तो साला तुम्हारा इंटरवयू दिए बगैर ही पत्ता कट जायेगा।
आज हिंदी पर अंग्रेजी हावी है इसमें अंग्रेजो का दोष नहीं है दोष है हमारा। हम ही है वो जो दिमक बन कर अँग्रेजी से ऐसे चिकप चुके है कि इस दिमक पर कितना भी किटनाशक डाला जाए तो भी ये उससे अलग नहीं होंगे।
अब चीन को ही ले लीजिए उस देश को भी तो दूसरे देश के साथ संबध बनाये रखना है लेकिन क्या उस देश ने अंग्रेजी को अपनाया है।क्या उस देश के लोगो ने अंग्रेजी न आने पर खुद को छोटा महसूस किया है। अरे उन्हें नहीं फर्क पड़ता है की उन्हें अंग्रेजी आती है या नहीं उन्हें तो उनकी मात्र भाषा न आने पर फर्क पड़ता है।
चीन के अलावा रशिया है, जर्मनी है जिन्हें अंग्रेजी से कोई मतलब नहीं है।
तो मैं आप लोगों से पूछता हूँ कि आप लोगो को उस पराये भाषा से क्यों इतना लगाव है। क्यों आप उस भाषा न आने से सामने वाले व्यक्ति औकात आंकते हो, क्या वो
एक भाषा किसी का भविष्य तय करने के लिए जरूरी है?
लेखक - सूरज मौर्या
Photo credit - Google
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