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लम्बी यात्रा के बाद हम राजस्थान के एक और ख़ूबसूरत शहर जोधपुर पहुंचे.
जोधपुर में मेरी मुलाकात श्री प्रतीक प्रजापति से हुई. 25 वर्षीय फेसबुक के माध्यम से जुड़े, उन्होंने सप्रयास मुझे खोज लिया और बहुत देर तक मेरे साथ रहे. प्रतीक 'फेसबुक' का सही उपयोग करते हैं. वे अब तक अपने फेसबुक मित्रों के आमंत्रण पर देश के अनेक शहरों का भ्रमण कर चुके हैं और आज तक उन्होंने कहीं भी होटल नहीं किया, उनके घरों में मेहमान रहे! जानकारियों का खजाना है प्रतीक.
मैंने उनसे पूछा, 'राजस्थान के विकास की गति क्या है?'
'अभी वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री हैं इसलिए पूर्वी राजस्थान का विकास हो रहा है, जब अशोक गहलोत थे तब पश्चिमी क्षेत्र का विकास हो रहा था. हर बार मुख्यमंत्री बदलते हैं तो दोनों क्षेत्र का विकास संतुलित हो जाता है.'
'इन दोनों में कौन अधिक लोकप्रिय है?'
'वसुंधरा राजे महारानी हैं, अशोक गहलोत जमीन का आदमी है. वैसे, दोनों अपने-अपने क्षेत्र में लोकप्रिय हैं.
'इस राज्य की सबसे बड़ी समस्या क्या है?'
'पानी की कमी. यहाँ बारिश कम होती है. अब हम लोगों ने कम पानी में भी फसल उगाने की विधि विकसित कर ली है. बाजरा हमारी नियमित फसल है ही, इसके अलावा बाड़मेर की मिट्टी रेगिस्तानी है, जलवायु सूखी है, वहां खजूर का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो रहा है. जैसलमेर के लोहावटी क्षेत्र में अनार के वृक्ष लहलहा रहे हैं.'
'क्या बारिश के पानी का संग्रहण नहीं होता?'
'होता है. राजा-महाराजा लोग इस पर बहुत ध्यान देते थे. हमारे जोधपुर में हर मोहल्ले में बावड़ी और तालाब हैं. यहाँ के राजा उमेदसिंह को लोग भगवान मानते थे क्योंकि वे प्रजा के हितचिन्तक थे. पुरानी बात है, सन 1930 में यहाँ मंदी आई थी, जिसे तीसा की मंदी कहते हैं, उस समय राजा उमेदसिंह ने मंदी के कारण पड़े अकाल से निपटने के लिए बावड़ी और तालाब खुदवाए, 'उमेद भवन' का निर्माण शुरू किया ताकि लोगों को रोजगार मिल सके और उनका भरण-पोषण हो सके.'
'राजस्थान के लोगों का पुरानेपन से बहुत जुड़ाव दिखता है?'
'किले और पुराने बने भवनों को देखकर आपको ऐसा लगा होगा. परिवर्तन बहुत तेज है यहाँ. जैसे, लोग नए मकान बनवा रहे हैं, ये आधुनिक शैली के बन रहे हैं. पुराने रीति-रिवाज़ भी कमजोर पड़ रहे हैं, जैसे, अब बहुएं साड़ी नहीं पहनना चाहती, सलवार-सूट पहनना है.
यह ठीक है कि सलवार-सूट आरामदेह रहता है लेकिन राजस्थान में घाघरा, चोली, साड़ी और घूँघट का रिवाज़ वर्षों से चला आ रहा है. घूँघट घर में आँखों तक और घर के बाहर गले तक. सास ने बहू से कहा-
"'ये तो करना होगा." बस, झगड़ा शुरू. बहुएं कहती हैं- "कौन सी देवी परदा करती है जो हम करें? मुगलों से चेहरा छुपाने के लिए औरतें घूँघट करती थी, अब किससे चेहरा छुपाना है?" आधुनिकता के साथ अब सहनशीलता कम हो गयी है. बाहर से दिखेगा कि सब एक घर में रह रहे हैं लेकिन सबके चौके अलग-अलग हैं.'
'राजस्थान से बहुत लोग बाहर कमाने-खाने गये और बहुत धन-सम्पदा बनाई, वे लोग यहाँ कभी-कभार आते हैं?'
'पुराने समय में केवल पुरुष बाहर जाते थे, औरतें यहीं रहती थी. अब पुरुषों के साथ औरतें भी जा रही हैं. अब ये औरतें जब शहरी माहौल से यहाँ आती हैं तो वे बदलकर आती हैं. इस कारण यहाँ की घूँघट प्रथा अब भसक रही है, पहरावा बदल रहा है.'
'फिर भी, शादी-ब्याह और मुंडन संस्कार आदि के लिए तो उनका आना-जाना लगा रहता है?'
'पहले लोग आते थे, अब कम होते जा रहा है. कारण यह है कि जो बाहर गये वे बड़े आदमी बन गए. उनके पास पैसा है लेकिन उनका परिवार या रिश्तेदार, जो राजस्थान में रह रहा है, उसने पैसा देखा नहीं है, जब 'ये' मांगते हैं तो 'वे' बिदकते हैं इसलिए उनका आवागमन कम होते जा रहा है.' (क्रमशः)
लेखक - द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
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