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एक निश्चय किया है मैंने
कि मैं अब से प्रेम पर कविताएं नहीं लिखूंगा!
तुम्हारी याद और वापस आने की प्रतीक्षा में
मैंने खुद को शून्य से भी नीचे लाकर खड़ा कर दिया है!
अब मैं सिर्फ पढूंगा
प्रेम में कूदे हुए
नए आशिक की कविताएँ
और
हिज्र के दर्द में मर रहे
रोते हुए लड़कों की कविताएँ!
किसी को आशिक कहना
और किसी को लड़का कहना
महज एक संयोग मात्र नहीं है
नया प्रेम उन्हें आशिक होना समझाता है
और प्रेम में असफलता
सत्य का बोध करवाती है!
कभी प्रेम मैंने भी किया था
मैं भी उस वक़्त आशिक था
अब मैं भी सामान्य हूँ
क्यूँकि वो प्रेम नहीं था
महज तुम्हारी भूल थी
और मेरा अपराध !!
कवि - सुमित झा
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