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राजस्थान का इतिहास वीरता की कथाओं से परिपूर्ण हैं. राजपूताना में अनेक राज्य थे जो आपस में लड़ते रहते थे क्योंकि हर शासक अपनी धाक जमाने के लिए नज़दीकी राज्यों पर अपना कब्ज़ा करने या असर बनाने की जुगत में लगा रहता था ताकि उसके राज्य का विस्तार हो. जब मुगलों की नज़र राजपूताने के वैभव और राजनीतिक बिखराव पर पड़ी तो उन्होंने हमले करने शुरू हुए. कुछ राजाओं ने मिलजुलकर अपना राज्य और राज्य का सम्मान बचाने के लिए मुगलों के आक्रमण का मुकाबला किया लेकिन कुछ ने मुगलों की ताकत के आगे घुटने टेक दिए और उनसे समझौता कर लिया.
जब भी और जहाँ भी युद्ध हुए हैं, उस क्षेत्र की धन-सम्पदा और स्त्रियों की इज्जत अवश्य लूटी जाती है. दिल्ली सल्तनत और मुगलकाल के युद्धों में भी ऐसा ही हुआ. राजपूताने की संपदा लुट गई तो लुट गई लेकिन स्त्रियों ने अपनी इज्ज़त पर आंच न आने दी. पहला 'साका' जैसलमेर के किले में हुआ था. जब शत्रु का आक्रमण हुआ तो पुरुष अपने सर पर केसरिया साफा बाँधकर घर से यह सोचकर निकलते कि या तो शत्रुओं को मारेंगे या मरेंगे, इस प्रक्रिया को 'केसरिया' कहा जाता था.
किले के बीचो-बीच एक विशाल हवनकुंड होता था, उसमें आग जलाई जाती थी. युद्ध क्षेत्र से यदि पराजय की खबर आती थी तो शत्रु सेना के किले में प्रवेश के पूर्व, उनके अत्याचार से बचने के लिए किले की समस्त स्त्रियाँ अपने बच्चों और आभूषणों के साथ उस धधकते हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग देती थी, जिसे हम 'जौहर' के नाम से जानते हैं. जब 'केसरिया' और 'जौहर' दोनों होता था तो उसे पूर्ण 'साका' मानते थे लेकिन यदि हमारी सेना की विजय होती थी तो केवल 'केसरिया' होता था, 'जौहर' नहीं होता था, इसे 'आधा साका' कहते थे. जैसलमेर के इतिहास में दो युद्धों में पराजय हुई और जौहर हुआ इस प्रकार वहां दो साका हुए. उन्हें एक युद्ध में विजय मिली, जौहर नहीं हुआ, केवल केसरिया हुआ, इसलिए वह आधा साका हुआ; अर्थात कुल मिलाकर अढ़ाई साका.
हिन्दुओं के आपसी युद्ध में जौहर नहीं होता था. जौहर का प्रचलन मुस्लिम शासकों के आक्रमण के बाद शुरू हुआ. 'जौहर' दिल्ली सल्तनत और मुग़ल साम्राज्य के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए सामूहिक आत्महत्या का दुस्साहस था. पहला जौहर सन 712 में सिंध में हुआ था जब वे मुहम्मद-बिन-कासिम से पराजित हुए थे. उसके बाद 1295 में जैसलमेर, 1301 में रणथम्भौर और 1303 में चित्तौड़गढ़ में अलाउद्दीन खिलजी से हारने के बाद हुआ. 1326 में जैसलमेर और 1327 में कम्पिली (कर्णाटक) में मोहम्मद-बिन-तुगलक से पराजित होने के कारण हुआ. 1528 में मध्यभारत के चंदेरी और रायसेन में बाबर और हुमायूं से हारने के कारण, 1535 में चित्तौड़गढ़ में बहादुर शाह (गुजरात) से हारने के कारण, 1568 में चित्तौड़गढ़ में अकबर से हारने के कारण और सन 1634 में औरंगजेब से हारने के कारण हज़ारों स्त्रियों और बच्चों ने अग्नि-समाधि ली.
'साका' अपने सम्मान की रक्षा के लिए तात्कालीन स्त्रियों के बलिदान का प्रणम्य लेकिन दुखद अध्याय था. (क्रमशः)
By - Dwarika Prasad Agrwal
Comments
पुरुष अपने सर पर केसरिया साफा बाँधकर घर से यह सोचकर निकलते कि या तो शत्रुओं को मारेंगे या मरेंगे, इस प्रक्रिया को 'केसरिया' कहा जाता था....bahut khoob Umda !
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