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वो देखो आसमाँ की कोख़ में मेरा तिरंगा लहरा रहा है।
वो देखो मेरी भारत माँ भी झूम रही है।।
शायद आज कोई फ़तह हासिल हुई है।
देश के पूत आज फिर देश का सर ऊँचा कर आये हैं।।
पर वही किसी की कोख़ किसी की मांग किसी के सर से उसके पिता का साया उठ गया होगा।
किसी की रूह तक आज बहुत रोई होगी।।
क्यों इन सीमा की जंजीरों में हमारे हाथ बंधे हैं?
क्यों हम दो मुल्कों में बंटे हैं?
पहले ये एक देश एक ताक़त हुआ करता था।
आज ये अलग अलग दो देश आपस में मिलने को तड़प रहे हैं।।
क्यों इन हाथों में पड़ी जंजीरों को हम तोड़ नहीं सकते?
क्यों जात पात धर्म की राह से निकल नहीं सकते??
सब बोला करते हैं हमें इन जात पात धर्म से आज़ादी दो।
क्यों कोई इस शांत लौ को हवा दे बढ़ा देता है?
इन सवालों के जवाब पाना शायद मुमकिन नहीं।
फिर भी देखो मेरा देश चमक रहा है।।
हिंदू केसरिया तो मुस्लिम हरे के लिए लड़ रहा है।
वही इन दोनों को अपने अंदर समेटे मेरा तिरंगा शान से लहरा रहा है।।
धन्य हो तुम वीर जवानों ।
धन्य हो वो कोख़ जिसने तुम्हे जनम दिया।।
जिसने तुम्हे जनम दिया।।
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By - अनुप्रिया (उभरती लेखिका, जिसके लेखन में भी नवाबी झलकती हैं।) |
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