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प्रिय रिम्मी,
तुम्हारा 'प्रेम निरस्ती पत्र' प्राप्त हुआ। करेजा छलनी जैसा कुछ नहीं हुआ, न ही हाथ की नस वस काटूंगा। न रम पी के गम भुलाउंगा। 10 रूपया वाली चिटकहिवा नोन के साथ न पियूँगा क्योंकि अभी जेब में इंग्लिश पीने के पैसे है वो भी चिली पनीर चखने के साथ मगर इससे तुम्हारी तवज्जो की डबल स्टोरी चौबल हो जायेगी। हमने कॉपी पेंसिल लेके जोड़-घटाना-गुणा-भाग किया तो पता चला हमने अपने-अपने प्रेम की लागत वसूल ली है।
हाँ हो! तुम्हारी ख़ातिर प्रेम का माने था कि हम तुमको एकाध बार सुयश घुमा दें, मल्टीप्लेक्स में मूवी दिखा दें, काहे कि जबसे तुम अपनी उ एमबीए वाली दोस्त को उसके बीपीओ वाले बॉयफ्रेंड के संग ई सब करते सुनी थी। तब से तुम्हारे भीतर ई चुल्ल थी कि ई सब तुम्हें भी करना है और उसे दिखाना है कि टाउन एरिया के लौंडे भी तन-पेट काट के उ सब कर सकते है जो गाँव के प्राइमरी मास्टर के लौंडे शहर में एमबीए करने के दौरान सीखते-करते है।
हमारी बुद्धि पे ही तेलौसी चढ़ गयी थी जो फेसबुक के हेलो-हाय...... मुअअआ में बह गए। खट से आपसे अपॉइंटमेंट भी ले लिए। आप तो घोड़ा चढ़ी थी ही, खट से इंदिरा गार्डन में दू ठो टिकट बुक कर दी। उधर दीनू गोलगप्पे खिला रहा था, इधर आप हमें लव के लिए एनओसी देती जा रही थी।
रतिया फेसबुक पे बितवला न टाइप जिंदगी हो गयी। आप मेर-मेर के टिटिम्मा बताती थी, हम भी उसी को परम सत्य मानकर उसमें बिंथ जाते थे। जब बातचीत का लोहा एकदम टिघलने लगता तो फ़िर आप फरमाइश कर देती कि हो, कल फिनिक्स चला जाये न हो, बब्ली कहती है कि रेलिंग पकड़कर फोटो खिंचाने पे ज्यादा लाइक मिलते है, फिर उही फिलम भी देख ली जायेगी, मज़बूरी में हम हाँ कर देते।
फ़िर तीन तिकड़ी भिड़ा के पैसन का जुगाड़ करके आपके सारे अरमान कर्जा पानी लेकर पूरा कर डालते। आप 'प्रेम निरस्ती पत्र' लिखते समय हमारे उ त्याग और संघर्ष का भी ख़्याल न की, अरे अभी तो हम आपके ऊपर किये गए खर्चों का कर्जा भी न पाट पाए थे और आपने रिश्तों की मेंहदी को लाइफबॉय के झाग में बहा दिया।
आँसुओ के लोर के साथ,
सोनू,
मर्फियागंज से।
लेखक - संकर्षण शुक्ला
नोट: रिम्मी और सोनू यह नाम काल्पनिक नाम के तौर पर लिखा गया है।
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