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गाँव की टेढी- मेढी पगडंडी पर उछलती -कूदती सन्नो आज बहुत ही प्रसन्न लग रही थी। कमर तक बल खाती नागिन सी चोटी।
कानों के झुमके आज कुछ ज्यादा ही झूम -झूमकर गालों को छू रहे थे। सिर पर पडी सतरंगी चुनरी चाँद से चेहरे की शोभा और ज्यादा बडा रही थी।
''का बात है सन्नो आज बहुत खुश लग रही है !''सन्नो की सहेली दुलारी ने सन्नो को छेडते हुए कहा।
''न --ऐसी बात न है हम तो ऐसे ही --!''
''अच्छा हमसे कछऊ नाय छुपा लगता है आज तेरे पिया जी की चिट्ठी आने बाली है।
''हाँ तू सही कह रही है जब भी डाक बाबू की साईकिल की घंटी इन टेढे-मेढे रास्तों पर पडकर बजती है न तो हमारे मन की घंटी बज जाती है।
''ओहो ---यह बात !''
''हाँ हम नाय जानत भगवान कैसे हैं --मगर जब डाक बाबू खाकी टीसट -पतलून और टोपी पहन कर हमारे मनबसिया जागन की चिट्ठी हमको पढकर सुनाते हैं तब डाक बाबू काऊ देवता से कम न लागत हैं सच्ची।''
तभी दूर से साईकिल की घंटी की वही जानी -पहचानी सी आवाज कानों में मिश्री सी मिठास घोलती है।
''लगत है डाक बाबू आय गये।''
''साईकिल तो डाक बाबू की सी है पर जो तो कौनऊ अंजान मर्द है।
''हमरी चिट्ठी लाये हो का ?''
''अं--तुम सन्नो हो क्या ?''
''हाँ हाँ हम ही हैं बताबओ !''
''तुम्हारी चिट्ठी है लो ।''
''पर डाक-बाबू कहाँ हैं ?''
''कल अचानक उनको दिल का दौरा पडा था अस्पताल में भर्ती हैं ।कल शाम जब शाम मैं उनको देखने गया तो उन्होने ही बताया कि मैं तुम्हारे पति की चिट्ठी पहुँचा दूँ तुम बहुत ही बेसब्री से इंतजार करती हो।
डाक-बाबू की बात सुनकर सन्नो की आँखों में आँसू आ गये।
''जब डाक-बाबू ठीक हो जायेंगे तभी हम यह चिट्ठी खोलकर उनसे ही पढबायेंगे।'' कहकर सन्नो ने चिट्ठी अपनी चुनरी के कौने में बाँध दी और बाग में बने शिवजी के मंदिर में प्रार्थना करने चली गयी डाक-बाबू की सलामती की प्रार्थना।
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By- राशि सिंह |
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