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जान पहचान को हुए मुकम्मल कई संदेशे जारी,
उसने कह दी बहुत सी बातें आयी मेरी भी बारी।
सोच संकोच को ताक पे रखकर हुआ कार्यक्रम मिलने का,
मिले बैठ दो चार बात में हुआ समय दिन ढ़लने का।
बस इतनी गुस्ताख़ी मेरी किया स्वंय से समझौता,
आज का बस ये लम्हा जी लूँ यही समय है इकलौता।
समझौते की शर्त भी सुन लो आ जाते हैं मुद्दे पर,
मुलाक़ात ये है पहली भी और आख़िरी भी रहबर।
जहाँ प्रेम में हुई प्राप्ति वही ठहराव भी आएगा,
ग़र ठहराव ने दे दी दस्तक सब समाप्त हो जाएगा।
कहना उसका यूँ बात बात पर रब का हूँ मैं एक फ़क़ीर,
आज यहाँ कल कहाँ न जाने खिंची न अब तक कोई लक़ीर।
वो कहता मैं हूँ एक परिंदा ना जाने कब उड़ जाऊँ,
कोई बतलाए ऐसे शख़्स से कैसे मैं जुड़ जाऊँ।
तय न कर सकी प्रथम मिलन पर झूमूं या अश्क बहाऊँ,
बेहतर है मैं अपनी शर्त में जीकर ही मर जाऊँ।।
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By- अंजली कुमारी |
Comments
बहुत बहुत शुक्रिया।
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