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आज जन्मदिन है उस शायर का जिसकी वजह से सूरज "शम्स" बन गया। आज का दिन मेरे लिए उतना ही मायने रखता है जितना किसी के लिए उसका जन्मदिन।
एक ऐसा शायर जिसकी तकलीफ़ और मोहब्ब्त की बस कल्पना मात्र की जा सकती है उसे जीने की हिम्मत हम में से किसी को नहीं है। एक ऐसा शायर जो खुशबू में रंग बिखेरता हुए कब ख़ून थूकनें लगता था ये शायद हम और आप कभी ही जान पायें । एक शायर जिसने ख़ुद को इस दुनिया से इतना अलग कर लिया की रौशनी तक से घबराने लगा।
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सूरज "शम्स" |
जिसने इंसानों को छोड़ किताबों से मोहब्ब्त कर ली। ये रम्ज़ शायद उसी वक़्त के लिए था।
"मेरे कमरे को सजाने की तम्मना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं"
जीते जी परिवार छूटने का ग़म क्या होता है ये हम और आप कभी समझ ही नहीं सकतें लेकिन जॉन ने इस पल को हर लम्हा जीया है। शायद वो दीवारें अभी भी मातम कर रही होंगी जिन्हें जॉन को छोड़ के जाना पड़ा।
"मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या"
सच में हम हर वक़्त यही तो कहते हैं यार इस ज़िन्दगी से अच्छा मर जाते हैं और ये कहते कहते कब साल महीने निकल जाते हैं हमे पता भी नहीं चलता। जितनी तारीख़े लिखी होती हैं सब देख के ही यहाँ से रुख़्सत होना है।
"जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमनें वो ज़िन्दगी गुज़ारी है"
हम उस मोहब्ब्त को भी बस महसूस कर सकते हैं जैसे की कोई सामने खड़ा हो कि हमें ललचा रहा हो कि मेरे पास ये है तुम्हारे पास क्या है। कभी कभी जलन भी होने लगती की कितनी ख़ूबसूरत रही होगी जॉन की फरिहा।
"था दरबार-ए-कलाँ भी उस का नौबत-ख़ाना उस का था
थी मेरे दिल की जो रानी अमरोहे की रानी थी"
इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं वैसे ही जॉन को इंद्रधनुष मान लीजिए शायरी का। इनके पास जो रंग है वो आपको कहीं नहीं मिलने वाले।
"एलिया जॉन कुछ नहीं करता
सिर्फ़ ख़ुश बू में रंग भरता है"
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