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और तभी सहीं मायने में "अच्छे दिन" आएंगे
बातों से सबको हाँक लिया
अब लाठी से हांके जायेंगे
जो नेता ना जन की माने
अब वो लतियाये जायेंगे
इस शहर में सब शीशे के घर
इक पत्थर तो फेंको यारो
ये महलों के रहवासी सब
सड़को पर भागे जाएंगे ।
तुम कर लो अपनी मनमानी
सारे हिसाब हो जायेंगे
चेहरे से तुम्हारे एक दिन तो
नकाब उठाये जायेंगे
जिस दिन खौलेगा खून यहाँ
तेरा मेरा इसका उसका तेरा मेरा
उस दिन शोषण करने वाले
अग्नि में डाले जायेंगे।
फिर सूरज को लगा ग्रहण
फिर से अंधियारा छाया है
उम्मीदों के उजले दिन पर
काली रजनी का साँया है
बाँध रखा है जिस तम ने अपने उजले सूरज को
वो ताले तोड़े जायेंगे
दरवाजे खोले जायेंगे।
कोशिश जारी है क्यूंकि
अब युवाओं की बारी है।
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By - सीमांत कश्यप (घुम्मकड़ लेेेखक ) |
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