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जिस विवाह में दहेज लेने देने के अपमानजनक खेल की स्वीकार्यता है. तो वो दो दिलों का मेल नहीं.
समाज. मां बाप और भाई और नातेदारों रिश्तेदारों की आम सहमति से लड़की से हुआ वैधानिक बलात्कार है. जिसे खुद लड़की भी खुशी खुशी पूरी नाज़ ओ अदा के साथ स्वीकार करती है.
और बाकी ज़िंदगी यह छिछला वैवाहिक संबंध जिस तरह आगे बढ़ता है उससे मन में जुगुप्सा ही पैदा होती है.
यह समझ से बाहर है कि कोई लड़की उस आदमी के साथ मरने तक अपनी ज़िंदगी कैसे गुजारती है या उसके पिल्ले कैसे पैदा करने को राजी हो जाती है या जीवन भर सिर से पैर तक हास्यास्पद सुहाग चिन्ह धारण कर उस बलात्कारी पुरुष को सात जन्मों तक पाने की कामना किस जिगरे से करती है. जिसने और जिसके मां बाप ने सरे आम उस लड़की का सौदा उसके बाप से करवाया हो..हर जगह..हर पल अपमानित कर.
इसीलिये आर्यावर्त में कम्पेनियनशिप का नामोनिशां नहीं है. सारा समाज..अधिकांश परिवार एडजस्टमेंट के नाम पर खींचे जा रहे हैं.
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By - राजीव मित्तल ( दुनिया की ऐसी तैसी करने आया पत्रकार ) |
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