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यह तय करना मुश्किल है कि फिल्म 'गाइड' का कौन सा पक्ष अधिक मज़बूत है. 'गाइड' को क्लासिक फिल्म का दर्जा देने के अनेक कारण हैं. क्लासिक की हैसियत उसे नसीब होती है जिस फिल्म का हर पहलू नायब हो. कहानी से लेकर संगीत तक, 'गाइड' में सब लाजवाब था. देवआनंद और विजय आनन्द ने इस फिल्म को तसल्ली से बनाया, हर दृश्य की कल्पना को वास्तविकता से जोड़ने की भरपूर कोशिश की.
एक प्रयोगवादी कहानी के उतार-चढ़ाव को गीत-संगीत के साथ सजा कर लोकप्रिय फिल्म की शक्ल में पेश करना निर्देशक विजय आनन्द के लिए निःसंदेह चुनौतीपूर्ण रहा होगा. अदायगी की चर्चा करें तो वहीदा के अलावा गाइड के रोल में देवआनंद और रोजी के पति के रूप में किशोर साहू ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया, वहीँ पर अनवर हुसैन ने राजू के मित्र की छोटी सी भूमिका में पूरा मज़मा लूट लिया.
फिल्म समीक्षक Prahlad Agrawal की मान्यता है, 'देवआनंद इस बात को मानने के लिए कभी तैयार नहीं हो सकते की 'गाइड' उनसे पहले विजयआनंद की फिल्म है, और, जो शैलेन्द्र ने कथा के फलसफे को करिश्माई गीतों में अवाम के दिलों में गंगा-जमुनी रसधारा की तरह न उतार दिया होता तो देवआनंद की अदाकारी किसी काम न आती.'
विजयआनंद का निर्देशन व संवाद, फली मिस्त्री की नयनाभिराम फोटोग्राफी और शैलेन्द्र द्वारा लिखे व सचिनदेव बर्मन द्वारा संगीतबद्ध दस सुमधुर गीतों ने इस फिल्म को एक क्लासिक फिल्म का दर्जा दे दिया. (क्रमशः)
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लेखक - द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ( साधारण सोच वाला सामान्य मनुष्य ) |
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