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एक व्यक्ति द्वारा न्यायालय के ऊपर चढ़कर भगवा झंडा फहराने और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों में बाबरी मस्जिद विध्वंस दिवस को शौर्य दिवस के रुप में मनाने जैसी घटनाओं पर चुप्पी ओढे रहने वाली मीडिया के लिए सॉफ्ट हिन्दुत्व क्यों मुद्दा बना हुआ है ? हम यदि इसके कारणों की पड़ताल करते हैं तो पाते हैं कि दरअसल विकास के मॉडल और विकास की प्रक्रिया को लेकर सभी दलों के बीच सहमति का भाव है ।
सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए निजीकरण और उदारीकरण ही विकास का एकमात्र रास्ता है , अंतर है तो सिर्फ इतना की कौन कितनी मजबूती से और डण्डे के जोर से इसे लागू कर पाता है । इस मामले में भारतीय जनता पार्टी कॉरपोरेट्स के लिए सबसे भरोसेमंद साबित हो रही है क्योंकि उसके दो चेहरे है विकास और हिंदुत्व ।
गैर-बराबरी और श्रम तथा संसाधनों की लूट पर आधारित विकास के प्रति जब समाज में आक्रोश उत्पन्न होता है तो वह हिंदुत्व का चेहरा आगे कर देती है । 'हिंदू धर्म खतरे में है' और 'लव जेहाद' जैसी अवधारणाएं गढ़ी जाती हैं पर यह सोचने की बात है कि हिंदू समाज के हित व्यापक समाज से भिन्न कैसे हो सकते हैं ? शिक्षा ,स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे समाज की प्रगति के आधार हैं इनकी समुचित व्यवस्था से ही समाज की प्रगति मापी जा सकती है।
पर कारपोरेट्स से मोटा चंदा वसूलने वाले मुख्यधारा के दलों के लिए यही स्थिति बेहतर है कि वह साफ्ट हिन्दुत्व और कट्टर हिन्दुत्व जैसे मुद्दों पर कुश्ती करते रहे और शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र को कॉर्पोरेटस के चरने के लिये खुला छोड दें।
भारतीय जनता पार्टी और उस की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिंदू हितों के पैरोकार होने का दावा भी बिल्कुल खोखला है । संघ का एकमात्र उद्देश्य अपना सांस्कृतिक प्रभुत्व कायम करना है और सांस्कृतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए उसका हिंदुत्व का विचार भी हिंदू धर्म के भीतर मौजूद विभिन्न समूहों के प्रति सम्मान का नहीं बल्कि उन सब को पचा जाने वाला और साम्राज्यवादी हितों का पोषक है।
हिंदू धर्म के बहुलतावादी स्वरूप के प्रति उसके पास कोई सम्मान का भाव नहीं है।
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By - अंकेश मद्देशिया |
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