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By - संजीव निगम
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listverse.com |
जबसे वे एक बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी में मोटे से पद पर बैठे हैं तबसे खुद भी मोटे होते जा रहे हैं। उनके इस बढ़ते मोटापे का सम्बन्ध शरीर से ज़्यादा दिमाग से है। जबसे मोटे पद पर बैठे हैं तबसे समझो बस बैठे ही बैठे हैं। पद के मोटापे के भार की वजह से उनका चलना फिरना दूभर हो गया है। जो कुछ सक्रियता है वह बस दिमाग की है।
दिमाग तो लगातार ऐसे दौड़ता है जैसे उसके पीछे चार पांच कुत्ते एक साथ लगे हुए हों। शरीर तो अब उतने ही काम का रह गया है जितना चिट्ठियां डालने का वो सड़क किनारे खड़ा लाल बक्सा। शरीर का काम सिर्फ उनके दिमाग को घर से ऑफिस और ऑफिस से घर ढोने का और कुछ अत्यंत ज़रूरी नित्य कर्म निपटवाने का ही रह गया है।
पत्नी , बच्चों और मित्रों की तरह से ही उनका शरीर भी उनके लिए उपेक्षित ही है। अपनी नौकरी के प्रारम्भिक दिनों में ही उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हो गया था कि सारे कष्टों की जड़ यह शरीर ही है। जैसे भगवान् बुद्ध इस शरीर के बीमारी , बुढ़ापा और मृत्यु जैसे विकार देख कर विचलित हुए थे और सन्यासी बन गए थे वैसे ही वे भी शरीर के साथ जुड़े मनोरंजन,परिवार प्रेम, अवकाश जैसे विकार देख कर विचलित हो गए थे। उन्होंने पाया था कि इन विकारों की वजह से ही लोग नौकरी में उच्च पद जैसी मोक्ष की अवस्था को प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
एक दिन ऑफिस के साइन बोर्ड रुपी बोधि वृक्ष के नीचे बैठ कर शर्मा चायवाले की कटिंग चाय पीते हुए उन्हें ये बोध हुआ कि अगर छोटी उम्र में बड़ा पद पाना है तो शरीर की मोह माया से बाहर निकलना होगा। तबसे उनका व्यक्तित्व मस्तिष्क प्रधान हो गया था। उनकी आत्मा शरीर में रहते हुए भी शरीर से अलग हो गयी थी। कंपनी का उच्चतम पद उनका लक्ष्य था और दिमाग उनका तीर। उन्होंने कड़ी प्रतिज्ञा कर ली थी कि या तो तीर निशाने पर लगेगा या फिर निशाने को लाकर तीर पर ठोंक दिया जाएगा पर लक्ष्य भेदन होकर ही रहेगा।
अपनी इस साधना से उन्होंने मस्तिष्क पर इतना ज़बरदस्त कमांड हासिल कर लिया है कि अब वे जब भी कभी बोलते हैं तो लगता है कि कोई व्यक्ति नहीं बल्कि विचार बोल रहा है। गम्भीरता ने उनके मुख को ऐसे घेर रखा है जैसे प्रदूषण ने दिल्ली को। जब कभी भूले भटके वे हँसते हैं तो लगता है जैसे गहरी धुंध में किसी बाइक की बत्ती टिमटिमा रही हो।
अपनी इस कठिन तपस्या से उन्होंने बहुत जल्द वह बड़ा पद प्राप्त कर लिया जिसके लिए इंतज़ार करते करते उनके ऑफिस के कई साथी अभूतपूर्व से भूतपूर्व हो गए। उनके अहंकार के साथ साथ उनका शरीर और सांस भी फूलने लगी है। डॉक्टर बार बार शरीर का ख्याल रखने को कह रहे हैं , एक्सरसाइज करने को कह रहे है और वे जवाब दे रहे हैं " ज़रूर करूँगा पहले बस एक प्रमोशन और पा लूँ। "
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