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मनीष पाण्डेय खूबसूरत वादियों में बसने वाले उत्तराखंड के हल्द्वानी के रहने वाले है। दिल से एक लेखक ,गायक, फ़िल्मकार है। इनकी म जिंदगी साहित्य ,सिनेमा ,संगीत के इर्द गिर्द है। साथ ही मनीष जी "आशिक़ " मिज़ाज़ भी है। उत्तराखंड से उन्होंने हिंदी डाकिया के लिए एक कविता लिख भेजी है... नजरें इनायत हों।
शायर की ज़िन्दगी में
रात का अंधकार होता है
चमकने की आरज़ू होती है
जलने की मजबूरी होती है
सिगरेट फूँकते कुछ शब्द होते हैं
जिनमें लिपटे होते हैं ज़ख्म माज़ी के
चमकने की आरज़ू होती है
जलने की मजबूरी होती है
सिगरेट फूँकते कुछ शब्द होते हैं
जिनमें लिपटे होते हैं ज़ख्म माज़ी के
शायर की ज़िन्दगी में
दूर दूर तक बेतरतीबी से बिखरा
सफेद काग़ज़ का ढ़ेर होता है
और होती है एक चुनौती
सफेद काग़ज़ को लगातार
इन्द्रधनुष में बदलते रहने की
दूर दूर तक बेतरतीबी से बिखरा
सफेद काग़ज़ का ढ़ेर होता है
और होती है एक चुनौती
सफेद काग़ज़ को लगातार
इन्द्रधनुष में बदलते रहने की
शायर की ज़िन्दगी में
अधूरे प्रेम को अमर करती
कालजयी रचनाएं होती हैं
सुखन फ़हम ग़ज़लें होती हैं
मुकम्मल इश्क़ की उम्मीद में
रूमानियत से भरे अफ़साने होते हैं
जिसका वो रचनकार भी होता है
और गढ़ा हुआ गुमनाम किरदार भी
अधूरे प्रेम को अमर करती
कालजयी रचनाएं होती हैं
सुखन फ़हम ग़ज़लें होती हैं
मुकम्मल इश्क़ की उम्मीद में
रूमानियत से भरे अफ़साने होते हैं
जिसका वो रचनकार भी होता है
और गढ़ा हुआ गुमनाम किरदार भी
शायर की ज़िन्दगी में
इत्र में भीगे हुए ताज़ा
सुर्ख लाल गुलाब होते हैं
सितारों की लडियां होती हैं
और होते हैं पूनम के चाँद
जिन्हें वो बहुत सलीके से
टांक देता हैं महबूबा के गालों पर
इत्र में भीगे हुए ताज़ा
सुर्ख लाल गुलाब होते हैं
सितारों की लडियां होती हैं
और होते हैं पूनम के चाँद
जिन्हें वो बहुत सलीके से
टांक देता हैं महबूबा के गालों पर
शायर की ज़िन्दगी में
दिन दुगना रात चौगुना
बढता हुआ ग़म का एक खज़ाना होता है
दिन दुगना रात चौगुना
बढता हुआ ग़म का एक खज़ाना होता है
जिसे बड़ी एहतियात से शायर
अपने माशूक की यादों के
साथ सजोकर रख लेता है
बिस्तर के सिराहने पर
अपने माशूक की यादों के
साथ सजोकर रख लेता है
बिस्तर के सिराहने पर
शायर की ज़िन्दगी में
दुनिया रचने की ताकत होती है
चेहरा बदलने की सहूलियत होती है
ख्वाब बुनने की फुरसत होती है
मोहब्बत जीने का मौका होता है
इम्तिहान होता है हर पल
ख्याल और हकीक़त में फ़र्क बनाए रखने का
दुनिया रचने की ताकत होती है
चेहरा बदलने की सहूलियत होती है
ख्वाब बुनने की फुरसत होती है
मोहब्बत जीने का मौका होता है
इम्तिहान होता है हर पल
ख्याल और हकीक़त में फ़र्क बनाए रखने का
शायर की ज़िन्दगी में
बेइंतहा झुंझलाहट होती है
नशे में धुत शामें होती हैं
तवायफ़ का सहारा होता है
बेवफाई के किस्से होते हैं
बेनामी चिट्ठियों के अवशेष होते हैं
हमदर्दी परोसती निगाहें होती हैं
और होती है बेचैनी जिये जाने की
बेइंतहा झुंझलाहट होती है
नशे में धुत शामें होती हैं
तवायफ़ का सहारा होता है
बेवफाई के किस्से होते हैं
बेनामी चिट्ठियों के अवशेष होते हैं
हमदर्दी परोसती निगाहें होती हैं
और होती है बेचैनी जिये जाने की
शायर की ज़िन्दगी में
बेवजह का तिस्सकार होता है
लांछन ,बेबुनियाद आरोप होते हैं
झूठी तसल्ली होती है
अंतहीन धोखे होते हैं
पहचाने जाने की भूख होती है
खून सुखाता अकेलापन होता है
लांछन ,बेबुनियाद आरोप होते हैं
झूठी तसल्ली होती है
अंतहीन धोखे होते हैं
पहचाने जाने की भूख होती है
खून सुखाता अकेलापन होता है
शायर की ज़िन्दगी में
शायरी जैसा कुछ भी नहीं होता .![]() |
मनीष पाण्डेय |
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