- Get link
- Other Apps
- Get link
- Other Apps
![]() |
Credit : Media vigil |
By - Suraj Mourya
13 साल पहले रामदेव की दिव्य फ़ार्मेसी की दवाओ में मानव हड्डियाँ मिलाने का मामला संसद में भी उठा था और मीडिया में भी इसकी काफ़ी चर्चा थी।
शायद याद होगा आपको या न भी हो। याद भी कैसे होगा भला आज अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए पतंजलि ने मीडिया के ऐसे कौनसे साधन नहीं जिन्हें किलो के भाव मे विज्ञापन न दिया हो।
Media Vigil नाम की एक वेबसाइट में छपी खबर के अनुसार आज से 13 साल पहले दिव्य फार्मेसी की दवाओं में मानव हड्डीयाँ मिलती है। फिर मामल सदन में भी गूँजता है। जिस वजह से मीडिया भी इस खबर को कटोरा भर भर कर अपने बुलेटिन में भी चला रही थी। इसका असर ये हुआ कि फार्मेसी में काम मार रहे मजदूरों की तनख्वा रुक गयी। जब मजदूरों का आंदोलन भड़का तो 93 मज़दूरों की नौकरी ले ली गई।
लेकिन मजदूरों ने हार नही मानी वो श्रम न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट तक लड़े। आख़िर 9 जनवरी को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मज़दूरो के हक़ में फ़ैसला सुनाते हुए 13 साल का बक़ाया क़रीब 14.50 करोड़ रुपये के भुगतान का आदेश भी दिया।
अगर देखा जाए तो हाल के दिनों में मज़दूरों को मिली यह बड़ी जीत है उनके लिए काफी बड़ी सफलता है, लेकिन मीडिया ने अपने घर का राशन खाली न हो जाने की डर से इस खबर को ग़ायब ही कर दी। न किसी हिंदी अख़बार में दिखी और न चैनल में। सिर्फ़ फ़ाइनेशियल एक्सप्रेस में ही इसकी जानकारी दी गई है।
सामाजिक कार्यकर्ता मसऊद अख़्तर फ़ेसबुक पर लिखते हैं—
2005 में हुए बाबा रामदेव की कंपनी दिव्य योग फार्मेसी के मजदूरों का विवाद शायद ही याद हो। अरे वही विवाद जिसमें दिव्य योग फार्मेसी के मजदूरों ने अपने शोषण के साथ दवाओं में जानवरों की हड्डियों के चूरा के साथ मानव अंगों को मिलाने का आरोप लगाया था। उस वक़्त मज़दूरों की लड़ाई में वृंदा करात ने समर्थन व साथ दिया था। मनुष्य अंग होने की शंका तब हुई जब एक अंगुली की हड्डी में अंगूठी पाया गया। इससे ज़ाहिर था कि वो हड्डी किसी मनुष्य की थी। इसपर मज़दूर भड़क गए और हड्डी का चूरा मिलाये जाने की बात बाहर आ गयी।
बाद में 21 मई 2005 को हरिद्वार के श्रमायुक्त ने कंपनी प्रबंधन व मज़दूरों में समझौता करा दिया। समझौते के तहत जब दूसरे दिन मज़दूर सुबह कामपर गए तो उन्हें गेट से वापस भगा दिया गया। श्रम अदालतों से लेकर हाई कोर्ट तक मज़दूरों ने यह लड़ाई सीटू के नेतृत्व में लड़ी। और हाई कोर्ट ने मज़दूरों को बड़ी राहत देते हुए दिव्य योग फार्मेसी को आदेश दिया है कि वो 93 मज़दूरों को वापस काम पर रखे और 2005 से तेरह वर्षों का वेतन भी दे जो कि 14.50 करोड़ होता है। मज़दूरों की यह एक बड़ी जीत है। सारे मज़दूरों के साथ सीटू को बधाई……
यह खबर 9 जनवरी के फाइनेंसियल एक्सप्रेस में निकला है। पर हिंदी के किसी अखबार में यह खबर अभी तक नहीं देखी।
अब सवाल ये उठता है की जिस मीडिया को भारत की जनता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मानती है क्या वो विज्ञापन दाताओं के हाथों बिक चुकी है ?
Reactions:
- Get link
- Other Apps
Comments
Post a comment