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By - अंकेश मद्देशिया
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inmemoryglobal.com |
जयशंकर प्रसाद ने अपनी आत्मकथा नहीं लिखी। पर जब 'हंस' का आत्मकथा पर केंद्रित अंक निकला तो प्रेमचंद जी के आग्रह पर उन्होंने 'आत्मकथ्य' शीर्षक से एक कविता लिखी। जिस में वह लिखते हैं।
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
प्रसाद जी का जीवन भले ही किसी भी तरह के शोरगुल और हलचल से दूर हो पर उनके साहित्य में अपने समय की अनुंगूजें पर्याप्त रूप से सुनाई पडती है। उनके साहित्य में ऐसा बहुत कुछ है जिसके लिए आज भी उन्हें पढा जाना चाहिए।
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