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डॉ. अंबेडकर की ये तस्वीरें नासिक के कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन के समय की हैं।
अंबेडकर की गांधी के प्रति सहृदयता और सम्मान का पता हमें दिसंबर 1927 में महाड़ में सत्याग्रह परिषद् के आयोजन से चलता है। अंबेडकर की प्रेरणा से आयोजित इस परिषद् के शामियाने में महात्मा गांधी का भी चित्र लगाया गया था।
इससे दो वर्ष पहले 1925 में बेलगांव में आयोजित बहिष्कृत परिषद में अंबेडकर ने कहा था, “जब कोई भी तुम्हारे निकट नहीं आ रहा है, तब महात्मा गांधी की सहानुभूति कोई छोटी बात नहीं है।”
महाड़ में सत्याग्रह के अचूक अस्त्र की ताकत का अंदाजा होने के बाद अंबेडकर इसे और भी तीव्रता से अपनाना चाहते थे। गांधीजी द्वारा प्रेरित वाइकोम मंदिर सत्याग्रह के सात वर्ष बाद 1930 में जब अंबेडकर ने उसी तर्ज पर नाशिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश का आंदोलन शुरू किया, तो इसे भी उन्होंने कालाराम मंदिर सत्याग्रह का ही नाम दिया।
सत्याग्रह एक ऐसा शब्द और विचार था जिसे गांधी ने ही गढ़ा था। हालांकि अपने स्वभाव के अनुरूप अंबेडकर ने इस सत्याग्रह के तौर-तरीकों में थोड़ा परिवर्तन अवश्य किया था।
अंबेडकर के सत्याग्रही मंदिर के दरवाजे के सामने पहले ही लंबी कतार लगाकर खड़े हो गए थे। डॉ अंबेडकर ने जिला प्रशासन को बता दिया था कि यदि कोई दर्शनार्थी (सवर्ण) कतार तोड़कर मंदिर में घुसने की कोशिश करेंगे, तो वे उसे रोकेंगे।
इसपर वहां के कलेक्टर गोर्डन और अंबेडकर के बीच हुई बातचीत इस तरह हुई बताई जाती है। इस बातचीत को सुनकर आपको तबसे 13 साल पहले चंपारण में गांधी और वहां के मजिस्ट्रेट हेकॉक के बीच हुई बातचीत की याद आ जाएगी।
कलेक्टर गोर्डन— किसी दर्शनार्थी के मंदिर में जाने से रोकने से क्या फौजदारी अपराध का मामला नहीं बन जाएगा?
अंबेडकर— हां, यह फौजदारी अपराध तो है ही।
गोर्डन— अगर मैं भारतीय दंड संहिता की धारा 144 के तहत आदेश दूं और महारों को वहां बैठने से मना कर दूं, तो आप क्या करेंगे?
अंबेडकर— उस हालत में हम और हमारे सहयोगी आपका आदेश नहीं मानेंगे।
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