- Get link
- Other Apps
- Get link
- Other Apps
By - राजीव मित्तल
इस क़दर क्रूर तेज़ाबी वातावरण और व्यवस्था में बच्चों को लाने के बारे में गम्भीर चिंतन ज़रूरी है. जहां हमारी घटिया सोच सिर्फ और सिर्फ उससे भी ज़्यादा घटिया राजनीति के ईर्द गिर्द नाचती हो.
मौत के मुंह में अपने बच्चों को भेजना यह हम मां बाप की फ़ितरत में शामिल हो चला है.
बच्चों के साथ मौत के खिलवाड़ के पीछे स्कूल प्रशासन का निर्मम रवैया है. हमारी सरकारों की निगरानी मशीनरी पूरी तरह क़फ़न चोर हो चुकी है भले ही उस क़फ़न में लिपटे खुद उसी के बच्चे क्यों न हों.
बच्चों की इतने बड़े पैमाने पर हो रहीं ये असामायिक मौतें किसी युद्धग्रस्त देश में गोली बारूद से ही नहीं, बल्कि मंदिरों में हो रहे भजन कीर्तनों, मस्ज़िद से उठती अजान और गुरुद्वारे से आ रही अरदास के शोरगुल में भी हो रही हैं.
जब कभी कबीर और कनि को लेकर उनके माता पिता का चिंता से लिपटा फोन आता है तो मेरे जैसे घोर नास्तिक को यही कहना पड़ा. तुम तो ईश्वर को मानते हो न उसी पर छोड़ो सब क्योंकि यही हमारा नसीब है...हमारी दुनिया का नसीब है.
Comments
Post a comment