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Credit - मेरी बातें |
सिगरेट की हर कश के बाद उसके होठों के बीच से निकलता धुआँ उसके हर ग़म को तार तार कर रहा था। उसके दिल के हर बोझों को हल्का कर रहा था। उसके हर सवाल का बारी बारी से जवाब दे रहा था। उसकी ज़िन्दगी शायद सवालों के बुनियाद पर ही खड़ी हुई थी और उसी पर झुक कर टिकी हुई थी और उन्हीं सवालों के जवाबों की खोज में दर दर भटकता सिगरेट के धुएँ में सवालों को छू मंतर करने की नाकाम कोशिश किये जा रहा था। चौथी गली की एक छोटी सी गुमटी पर वह रोजाना शाम को ठीक सात बजे हाजिर हो जाया करता था और तब तक वहाँ से हिलता नहीं था जब तक कि वह चार सिगरेटों के धुएँ को अपने सीने में नहीं उतार लेता। फिर वह अपना जैकेट कंधे पर रखकर और शर्ट को पैंट से बाहर निकालकर चुपचाप अपने रास्ते पर चल पड़ता।
अमूमन सारा दिन सन्नाटे की ज़िंदगी जीने वाली वो चौथी गली शाम होते होते गुलज़ार होने लगती थी। बहुत से लोग अपने दिन भर की थकान मिटाने के लिए चचा की गुमटी पर आया करते थे। शालिनी पिछले कुछ दिनों से ये सब गौर से देख रही थी। शालिनी की उम्र कुछ 20-21 बरस की रही होगी। इन सब में उसे वह बंदा काफी आकर्षित कर रहा था। शालिनी उस वक़्त उम्र के जिस पड़ाव पर थी, उसका आकर्षित होना लाज़मी था। शालिनी के अंदाजे से उसकी उम्र कुछ 25-26 बरस लग रही थी और कद काठी औसत। 'वह बन्दा इतना नशा क्यों रहा है? अपनी अच्छी खासी ज़िन्दगी को क्यों खाई में धकेलना चाहता है, ये बातें शालिनी को परेशान कर रही थीं।' ज़िन्दगी को समझने की उधेड़बुन में लगी शालिनी ने जब अगले दिन भी उस बन्दे को वैसा ही करते देखा तो उससे रहा न गया। आज इससे इसका कारण जान कर ही रहूँगी, क्यों ये अपनी ज़िंदगी गँवाने पर तुला है, यही सब सोचते हुए शालिनी तेजी से छत से नीचे की ओर उतारने लगी। मगर जब वह चचा की गुमटी पर पहुँची तो वह जा चुका था।
'चाचा, ये लड़का कौन था?'
'कौन?.... कौन लड़का?'
'चाचा, मैं शालिनी। अरे यही जो रोज इतनी सारी सिगरेटें फूँक कर चला जाता है, जिंदगी नरक करनी है क्या इसे।'
'अच्छा... अनस! तो तुम अनस की बात कर रही हो।'
'अच्छा तो इसका नाम अनस है।'
'क्या बताऊँ बेटा, जिसको जिंदगी बोझ लगे उसके लिए क्या नरक और क्या जन्नत।'
'मतलब?'
'मतलब कि बेटा...
*2 साल पहले....*
उन दिनों अनस दिल्ली में रहता था। घर में अम्मी-अब्बू और एक प्यारी सी नई नवेली पत्नी थी। उनकी शादी को बस चंद महीने ही हुए थे। छोटा सा परिवार था। हँसी खुशी जिंदगी का लुफ़्त उठा रहे थे। अनस बैंक में काम करता था। हाल ही में नौकरी लगी थी और अनस काफी मेहनती था। पूरी लगन से काम करता था। दूसरों का काम भी खुद ही कर दिया करता था।
एक दिन जब अनस दफ्तर में कुछ फाइलों के काम निपटा रहा था, उसके फ़ोन की घण्टी बजती है...
'हेलो!'
'क्या मैं अनस से बात कर रही हूँ ?'
'जी हाँ, मैं अनस बोल रहा हूँ, आप कौन ?'
'सायरा आपकी बीवी है ?'
'जी हाँ, मगर आप कौन और ये क्यों पूछ रही हैं ?'
'देखिए, मेरी बात गौर से सुनिए... सायरा की तबियत ठीक नहीं है आप फौरन घर आ जाइये।'
'मगर आप बोल कौन रही हैं? ....हेलो! हेलो!' मगर तब तक फ़ोन कट चुका था।
अनस ने उस नम्बर पर कॉल किया मगर किसी ने रिसीव नहीं किया। वो बहुत परेशान हो गया था। सब काम छोड़कर वह तुरंत घर के लिए निकल गया। किसी तरह वो आनन फानन में घर पहुँचता है। डोर बेल बजाने पर किसी अनजान लड़की ने दरवाजा खोला।
'आप कौन और सायरा कहाँ है ?'
'वो अपने बेडरूम में है।'
वो दौड़ता हुआ बेडरूम की ओर भागा। सायरा बेड पर चादर ओढ़े लेटी हुई थी। सायरा की आँखे बंद थी। ये देख अनस का दिल रुआँसा सा हो गया था।
'सायरा! सायरा! क्या हुआ तुम्हें ? आँखे खोलो सायरा?' अनस सायरा का हाथ पकड़े हुए था।
'क्या हुआ है सायरा को?' उस लड़की की तरफ देखते हुए अनस ने सवाल किया।
'आप पापा बनने वाले हैं अनस!' अनस के पीछे से आवाज़ आती है।
वो चौंककर सायरा की ओर घूमता है। सायरा एक आँख खोले हुए मुस्कुरा रही थी।
'क्या?' अनस के मुँह से बस इतना ही निकला।
सायरा और उसकी दोस्त जोर से हँस पड़ी।
'क्या मैं सच में पापा बनने वाला हूँ? कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रही न?'
'सायरा सच कह रही है'
'पहले आप बताइये, आप कौन हैं ?'
'अनस ये मेरी दोस्त है, रश्मि। पेशे से डॉक्टर है। इसी ने तुम्हें कॉल किया था। कहो कैसा लगा सरप्राइज ?'
'सरप्राइज... ये सरप्राइज है तो फिर झटका क्या होता है? मालूम है मैं कितना डर गया था।'
'मुझे माफ़ कर दीजिए मुझे लगा आप ख़ुश हो जायेंगे।'
'नहीं, मैं बहुत खुश हूँ मगर मुझे तुम्हारे बताने का तरीका पसंद नहीं आया।'
सॉरी अनस जी, इसमें सायरा की कोई गलती नहीं है। मैंने ही उसे ऐसा करने को कहा था।'
'अरे नहीं नहीं... आप क्यों माफी माँग रही हैं।'
'अच्छा सायरा, तुम अपना ख़याल रखना मुझे अभी आफिस जाना है। कुछ जरूरी काम है उसे निपटा कर आता हूँ। .... और हाँ, आज रात का खाना होटल में।'
'अच्छा तो मैं चलता हूँ। अम्मी और अब्बू को भी बाहर चलने के लिए मना लेना और हाँ तैयार रहना।'
शाम को 7 बजे अनस दफ्तर से लौटा।
'अम्मी, सायरा... आप लोग तैयार हैं?'
'हम लोग तो कब से आपका वेट कर रहे हैं। आप ही लेट हैं।'
'अरे बाबा, थोड़ा काम मे फँस गया था। मैं बस 5 मिनट में तैयार हो के आता हूँ।'
'वैसे हम लोग जा कहाँ रहे हैं, अनस?' सायरा ने बड़ी ही कौतूहलता से पूछा।
'SPH... मैंने SPH में एक टेबल बुक किया हुआ है। ठीक रहेगा न?'
'SPH..! मगर वो तो काफी महँगा है न..'
अरे बेटा अनस क्या जरूरत थी इतने महंगे होटल में चलने की। घर पर ही कुछ बढ़िया से बनाते तो ठीक न रहता।'
'अरे अब्बू, क्या हो जाएगा जो एक दिन महंगे होटल में खाना खा लेंगे तो। और.. वैसे भी इतनी खुशी के मौके पर पैसे नहीं खर्च होंगे तो कब खर्च होंगे।'
सभी लोग SPH पहुँचते हैं। उस दिन होटल में काफी भीड़ थी। मानो हर कोई किसी न किसी वजह से खुश हुआ हो। सब किसी न किसी बात की खुशियाँ मना रहे थे। किसी का प्रमोशन हुआ लग रहा था तो किसी की शादी फिक्स हो गयी थी। माहौल काफी ख़ुशनुमा था।
वेटर उन्हें उनकी जगह दिखता है। तभी अनस के फ़ोन की घण्टी बजती है....
'आप लोग खाना आर्डर करिए, मैं बस दो मिनट में आता हूँ'।'
'हाँ खन्ना साहब बोलिये...'(अनस फ़ोन पर)
.... वो इसके आगे कुछ बोल पाता कि इतने में ही एक जोरदार धमाका होता है। उसके कान एकदम सुन्न पड़ गए। उसको कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था सिवाय एक बीप के.....
उसके हाथ से फ़ोन छूट जाता है। चारो ओर चीत्कार मची हुई थी। सब इधर उधर भाग रहे थे। कोई पानी लिए दौड़ रहा था तो कोई अग्निशमन सिलिंडर। कोई अपनों को ढूँढ रहा था तो कोई अपनों के चले जाने पर रोये जा रहा था। अनस भागता है... वो इधर उधर पागलों की तरह दौड़ रहा था। आँखों से आँसू अपने आप निकल रहे थे जो रुकने को राजी ही नहीं थे।
'अनस... अनस...' एक दबी दबी सी कराहती हुई आवाज़ आयी।
'अम्मी... अम्मी... अम्मी..' अनस दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा।
'अम्मी आपको कुछ नहीं होगा अम्मी' मगर तब तक उनकी साँसे थम चुकी थीं। वहीं बगल में उसके अब्बू की भी क्षत विक्षत लाश जल रही थी। सायरा कहीं नज़र नहीं आ रही थी।
'सायरा... सायरा... सायरा!' अनस बस चिल्लाये जा रहा था। रोते हुए उसकी आवाज़ भी दब जा रही थी। एक टेबल के नीचे सायरा की भी लाश तबी हुई थी। अनस उसको देख बदहवास हो गया और वहीं गिर पड़ा।
*आज....*
'मगर चाचा, ये सब हुआ कैसे? किसने किया था ये सब? ... और पुलिस... पुलिस क्या कर रही था?'
'कई महीने पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने के बाद छनबीन में मालूम हुआ कि ये एक टेररिस्ट अटैक था जिन्होंने उसी दिन दो और होटलों को निशाना बनाया था।'
'उसके बाद क्या हुआ?'
'अनस नौकरी और शहर छोड़कर यहाँ आ गया और अपनी तन्हा जिंदगी में एक साथी की तलाश में भटकते हुए इस चौथी गली में आ पहुँचा। यहाँ की सिगरेट में उसने वो साथी और सहारा दोनों ढूँढ लिया। बैंक की नौकरी तो छूट गयी लेकिन उसने जिंदगी के बैंक में चार खाते खुलवा लिए हैं- एक अपनी अम्मी के नाम का, एक अब्बू के नाम का, एक सायरा के नाम का और एक अपने अजन्मे बच्चे के नाम का और रोज उन खातों में एक एक सिगरेट का धुआँ भरता जा रहा है।
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