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मुद्दा क्या है ?
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THE WIRE |
मुझे बात नहीं करनी उन्नाव के ऊपर न ही कठुआ में जो हुआ उसके ऊपर। क्यों ? क्यों की थक चुका हूँ मैं। आपको क्या लगता है सिर्फ दो घटनाएं घटती हैं ऐसी रोज़। क्यों किसी की फोटो देख़ के ही लोगो के अंदर का देशभक्त उफ़ान मारने लगता है। आसिफा हो या कोई और। ऐसी सैकड़ों घटनाएं रोज़ होती हैं हर रोज़। या कह लीजिये हर घंटे। मुझे नहीं जानना है इतिहास उन्नाव के उस विधायक का। वो कहाँ से आया था कहाँ पे है और क्यों है ? लेकिन मुझे प्रधान सेवक से बात पूछनी है कि क्या योगी आदित्यनाथ जैसे इंसान को देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उसके हाथों में दे देना कहाँ तक सही है ?
हिंदुत्व के नाम पर रोज़ बर्बरता और क्रूरता का जो नग्न प्रदर्शन ये सरकार कर रही है ये ज़्यादा वक़्त तक नहीं चलने वाला है। हमें आदत हो गयी है ये सब देखने की, सहने की। यदि कोई इन बातों पर आवाज़ उठाता है तो उससे बड़ा देश द्रोही कोई नहीं। ज़्यादा से ज़्यादा हम कलम उठा कर श्रद्धान्जलि लिख देंगे नहीं तो मोमबत्ती उठा के इंडिया गेट निकल जाएंगे। निर्भया वाले वक़्त भी निकले थें , ज़ैनब के वक़्त भी। कितना बदलाव आया ?
सरकार क्यों इन चीज़ों के ऊपर कुछ कहने से बचती है ? कहाँ मर जाती है उनकी संवेदनाएं जब एक 8 साल की फूल जैसी बच्ची की लाश दबी कुचली हुई मिलती है ?
बलात्कार कोई छोटी घटना नहीं होती है कि सुब्ह चाय के साथ पढ़ के पन्ना पलट गया। बस एक मिनट के लिए उस चाय को रख के उस घटना पे ग़ौर करिये। अगर वो चाय की घूंट आपके हलक से उतर जाये तो आगे बढ़ना।
लोग कानून के पास जाते हैं की वो उनकी मदद करेगा। लेकिन क्या होगा अगर वो भी उनमें से ही निकले जिनके लिए आपने उसका दरवाज़ा खटखटाया है। हर ख़बर के पीछे कोई न कोई कारण ज़रूर होता है। वरना वो अख़बार में इतने दिनों तक नहीं बनी रहेगी। कल तक कुलदीप सिंह सेंगर को कौन जानता था। आज उससे ज़्यादा ट्रेंड कोई नहीं कर रहा। क्यों पढ़ रहे हैं हम उसके बारे में ? क्या ज़रूरत है ? वो दोषी है, उसे सज़ा दो, काम ख़त्म।
इसके बाद शुरू होगा प्लॉट में ट्विस्ट आपको ख़बर मिलेगी की पीड़िता के पिता और चाचा उस इलाके में कुख्यात हैं। यहाँ से शुरू होगी आपके दिमाग में हलचल की अरे तब तो ये सब होना ही है। सही है। लेकिन अगर वो इतने बड़े कुख्यात थें जिनके ऊपर 20 से ज़्यादा मुकदमें चल रहे थें तब तो "द ग्रेट योगी आदित्यनाथ जी" को उनका एनकाउंटर करवा देना चाहिए था। उस लड़की के बलात्कार के बाद ही उन्हें ये बात कैसे याद आयी ?
लोग लिख रहे हैं की तुम लोग इन सब मुद्दों पे नहीं लिख रहे मर गए हो तुम सब, संवेदनाएं ख़त्म हो चुकी हैं तुम्हारी फलाना ढिमका। तो सुनो ऐसा कुछ नहीं है
"मैं बस उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूं कि कब ऐसी कोई घटना मेरे साथ भी घटे और मैं भी रोऊं और चींख चींख के सरकार से सवाल करूँ कि जनाब क्या मुझे इंसाफ मिलेगा ?"
प्रे फॉर सीरिया लिखने वालों वक़्त आ गया है प्रे फॉर इंडिया लिखने का।
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