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आज हिंदुस्तान में सब रहते हैं। हिंदू रहते हैं,मुसलमान रहते हैं,जैन,सिख,बौध,ईसाई रहते हैं। मगर यह सोचकर अत्यन्त पीड़ा होती है कि इंसान नहीं रहते हैं। आठ वर्ष की नन्हीं-सी बच्ची का बलात्कार और ये जघन्य अपराध मूर्त रूप लेता है एक मंदिर के प्रांगण में। ये इंसान नहीं हैं,हैवान हैं।
न ये हिन्दू हैं न मुसलमान हैं। आश्चर्य तो यह सोचकर होता है कि ऐसी दुखद घड़ी में भी, जहाँ मानवता दम तोड़ रही है, ये राजनीतिक पार्टियाँ धर्म का खेल खेलने से बाज़ नहीं आती हैं और अब सच कहूँ तो इस बात पर इतना आश्चर्य नहीं होता है जितना यह सोचकर होता है कि लोग कितने अंधे हैं कि उन्हें सच्चाई दीखती ही नहीं है।
हर पाँच साल पर नासमझ लोगों के इसी अंधेपन के सहारे कोई ना कोई राजनीतिक पार्टी अपनी रोटी सेंकती है और इंसानियत हर रोज़ इंसाफ़ की ख़्वाहिश में दम तोड़ देती है। कितने बहरे हैं लोग! हर रोज़ जाने कितनी मासूम साँसें चीख़-चीख़ कर दम तोड़ देती हैं पर किसी को कुछ सुनाई नहीं देता। किसी को साल-भर से इंसाफ़ नहीं मिला है जबकि सुनने में आया है उत्तरप्रदेश में सुशासन है। इस देश की आत्मा मर चुकी है।
सिर्फ हाँड़-माँस के लोग हैं,रूह कब का रुख़्सत हो चुकी है। वो आसिफ़ा का नहीं अपितु भारत माता का बलात्कार था। आसिफ़ा नहीं मरी है, आपकी,मेरी,हम सब की भारत माता ने दम तोड़ा है।
मेरा काम लिखना है सो लिखता हूँ। लोगों को अक़्ल आए तो कुछ परिवर्तन हो भी नहीं तो अपराधों का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा। पहले निर्भया, अब आसिफ़ा।
चौकन्ने रहिए कहीं कल आपकी अपनी बेटी का नाम इस फ़ेहरिस्त में न आ जाए।
अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता है। अब भी वक़्त है जाग जाओ यारों।
जाग मेरे अहले वतन के तेरी आबरू लुट रही है।
भोलापन,मासूमियत,नन्हीं साँसें रोज़ दम तोड़ रही है।
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