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By - धैर्यकांत
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फ़ोटो - Kindle magazine |
मंटो को मैं नहीं जानता और
न मैंने उसको पढ़ा है लेकिन हाँ,
उसके किस्से सुने है और वो काफी है ये जानने के लिए को वो शख्स कैसा
लिखता होगा - एक दम चरेर और ख़ालिस.
आज का एक दौर है जहाँ पे हर कोई अपने आप को लेखक मान बैठा है और एक
दुसरे से बिन बात के प्रतियोगिता करने में लगा हुआ है , उस दौर में मंटो आपको अपनी
औकात बता देता है.
मंटो को पढ़िए या न पढ़िए , लेकिन उसकी शख्शियत को जानिये , जैसे को जैसा लिखता है और फ़र्ज़ी का अलंकार नहीं जोड़ता है. वो
कहानियों में अदब से ज्यादा यथार्थ को मायने देता था , वो मंटो है , वो झूठ नहीं लिखता था.
समाज में जो है ,
अगर ऐसा है तो उसको ऐसे ही लिखा जाना चाइये , आपके कानो में दर्द होता है
, आपकी
आँखों को चुभती है , तो निकल
जाइये उसको सँवारने में , लेकिन ये
मत कहिये की ये नहीं होता है. लोग बचते है बुरा लिखने से , कारण बीच में इमेज की चिंता
हो जाती है , आप ऐसा
सोंचते है तो आप कम से कम लेखक या शायर तो नहीं है , आप सिर्फ दोगले हो सकते है.
लेखन में आपकी क्रिएटिव लिबर्टी है , लेकिन आप लिबर्टी लेके इतना ऊपर न चले जाए जहाँ से
प्रेमिका ये जिद कर दे की तुम भोंसड़ी के चाँद लेके आज आओ , हमको कम्पेयर करना है की
मैं उसके जैसी हूँ या उससे ज्यादा खूबसूरत हूँ. भोंसड़ी के फ्लो में निकल गया , आपका भी निकलता होगा , नहीं निकलता है तो मैं
इसमें कोई मदद नहीं कर सकता.
सुनने में आपकी शुगर कटिंग अच्छी लग सकती है लेकिन उसका कोई वजूद
नहीं है , लोग
सोचेंगे की इसने अच्छा लिखा है लेकिन वो लोग है, वो इतना ही सोचेंगे , इससे ज्यादा नहीं.
मैं ये नहीं कह रहा की आप भी मंटो जैसा लिखिए , वो आप लिख भी नहीं सकते ,फिर भी जैसा को जैसे के
क्लोज़ भी लिख दिया कीजिये क्यूंकि चाँद घिस रहा है , उसको वजह चलेगी पता तो इन शायरों को बहुत बद्दुआ
देगा.
मरना सबको है , मंटो भी
मर गया.
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