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By - प्रशांत तिवारी
'तुम कुछ नहीं, महज़ एक मुआवज़ा हो'
आओ मैं तुमसे
तुम्हारा परिचय करा दूं,
तुम्हें भ्रम है
अपने एक शरीर
और एक जान होने का।
लेकिन तुम मुआवज़ा हो
और कभी-कभी
सिर्फ मांस के लोथड़े हो
जो किसी टूटी-फूटी
सड़क की गिट्टियों के बीच
धंस के रह जाएगा
जिसके ऊपर से गुज़रेंगी
मोटरसाइकिलें
कहीं दूर जाने को
और फिर
मुआवज़ा बन जाने को।
इस भ्रम से बाहर निकलो
हे मुआवज़े!
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