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By - प्रद्युमन यादव
केरल में इस समय निपाह वायरस तेजी से फैल रहा है. यह वायरस सुअर , फल खाने वाली चमगादड़ और संक्रमित इंसानों से एक दूसरे में फैलता है. इस वायरस की चपेट में आने से व्यक्ति को इंसेफेलाइटिस , सांस संबंधी दिक्कत और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो जाती हैं और वह 24-48 घंटो के भीतर ही कोमा में पहुंच जाता है. केरल के अस्पतालों में इस समय इस वायरस की चपेट में आने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इससे अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है.
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फ़ोटो - बीबीसी |
केरल में इस समय निपाह वायरस तेजी से फैल रहा है. यह वायरस सुअर , फल खाने वाली चमगादड़ और संक्रमित इंसानों से एक दूसरे में फैलता है. इस वायरस की चपेट में आने से व्यक्ति को इंसेफेलाइटिस , सांस संबंधी दिक्कत और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो जाती हैं और वह 24-48 घंटो के भीतर ही कोमा में पहुंच जाता है. केरल के अस्पतालों में इस समय इस वायरस की चपेट में आने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इससे अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है.
इन सब के बीच एक ऐसा वाकया सामने आया है जिसने लोगों की आंखे नम कर दी हैं.
लिनी पुत्थुसेरी केरल के कोझिकोड के पेराम्बर अस्पताल में कार्यरत एक 31 वर्षीय युवा नर्स थीं. उन्हें जैसे ही खबर मिली कि वहां निपाह वायरस तेजी से फैल रहा और लोग मर रहे हैं वह फौरन मेडिकल टीम में शामिल हो गयी और अगले दिन से मरीजों की सेवा में जुट गयी.
लेकिन लिनी को नहीं पता था कि शायद वो आखिरी बार मरीजों की सेवा कर रही हैं. कुछ ही दिनों में वह भी निपाह वायरस की चपेट में आ गयी.
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फ़ोटो - बीबीसी |
एक आम इंसान इस स्थिति में शायद डिप्रेस होता , अपने परिजनों से मिलता या मृत्यु के भय से आत्महत्या कर लेता. लेकिन लिनी ने ऐसा नहीं किया. संभव है कि वह एक आम इंसान की तरह घबराई होंगी, मौत के डर से हताश हुई होंगी लेकिन उन्होंने कुछ भी ज़ाहिर नहीं होने दिया. लिनी ने पता नहीं कैसे अपने आप को उस स्थिति में नियंत्रित किया होगा.
मैं इस बात की कल्पना नहीं कर पाया कि मेरे पास कुछ दिन या घंटे बचते तो लिनी की जगह मैं क्या करता.
कहते हैं जब आपके पास जीवन के बेहद कम क्षण बचे हो तो बचे हुए समय में जीवन जीने के तरीके का चुनाव ही बताता है कि आप असल में किस तरह के व्यक्ति हैं. लिनी ने अपने जीवन के अंतिम क्षण में मरीजों की सेवा करने का चुनाव किया. वह अपने परिजन और किसी अन्य जान-पहचान या अनजान व्यक्ति से नहीं मिली. वह नहीं चाहती थी कि उनके अंतिम वक्त में भावुकतापूर्ण लापरवाही के चलते कोई और निपाह वायरस का शिकार हो और दर्दनाक मौत मरे. अपने अंतिम वक्त में संभवतः उन्हें अपने पति और अपने 2 साल तथा 7 साल के दो बच्चों से न मिल पाने की टीस जरूर रही होगी लेकिन वह अस्पताल में ही डटी रहीं. अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने मरीजों की सेवा को दिया.
शायद वह उनका सेवाभाव रहा होगा जिसने उन्हें कुछ घंटे हिम्मत के साथ जीने की प्रेरणा दी होगी.
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फ़ोटो - रिपब्लिक |
उनकी मौत उसी अस्पताल में मरीज बनकर हुई जहां वह मरीजों की सेवा कर रही थीं. मरने से पहले उन्होंने अपने पति को एक पत्र लिखा , जिसे बाद में पढ़ने के बाद सबकी आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने लिखा था ,
' मैं लगभग अपनी राह पर हूं. मुझे नहीं लगता , मैं आप सब को देख पाऊंगी. सॉरी !
हमारे बच्चों की ठीक से देखभाल करना. उन्हें अपने साथ गल्फ ( खाड़ी देश ) ले जाना और उन्हें हमारे पिता की तरह बिल्कुल अकेले मत छोड़ना.
ढेर सारा प्यार ! '
ये सब पढ़कर लिनी के पति पर क्या बीती होगी मैं इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकता. लिनी ने इसे लिखते हुए क्या महसूस किया होगा , इसकी कल्पना करना भी मेरे लिए मुश्किल है.
लिनी ने आज के दौर में जो किया वह शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है. ये सब लिखते समय उनके लिए मेडिकल प्रोफेशन और सेवाभाव की मिसाल कायम करने वाली महिला जैसे शब्द छोटे लग रहे थे. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस महिला के लिए क्या लिखूं. वह जिंदा रहतीं तो दुनिया के भले की उम्मीद रखता , उनकी तारीफ में कुछ शब्द लिखता लेकिन उनकी मौत के साथ ही ये भाव भी मर गया.
लिनी के लिए सिर्फ इतना ही कर सकता हूँ कि आज से उन्हें अपनी स्मृतियों में संजो कर रखूं. वहां वह नहीं मरेंगीं. वहां वह मेरे जीवन के अंतिम क्षण तक जीवित रहेंगी.
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