- Get link
- Other Apps
- Get link
- Other Apps
![]() |
फ़ोटो - नवदयटाइम्स |
1885 में स्थापित कांग्रेस का निशान लंबे समय तक , दो बैलों की जोड़ी रहा. इसे 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद चुनाव आयोग द्वारा जब्त कर लिया गया. उसके बाद चुनाव चिह्न बदल कर गाय-बछड़ा हुआ. लेकिन इसे भी 1977 के बाद जब्त कर लिया गया.
वर्तमान में कांग्रेस के चुनाव चिह्न पंजे का प्रयोग सबसे पहले इंदिरा गांधी ने किया. कहा जाता है कि 1977 के बाद परेशानी की हालत में श्रीमती गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती का आशीर्वाद लेने पहुंची. इंदिरा गांधी की बात सुनने के बाद पहले तो शंकराचार्य मौन हो गए लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया तथा 'हाथ का पंजा' पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा. उस समय आंध्र प्रदेश समेत चार राज्यों के चुनाव होने वाले थे. श्रीमती गांधी ने उसी वक्त कांग्रेस आई की स्थापना की और आयोग को बताया कि अब पार्टी का चुनाव चिन्ह पंजा होगा. उन चुनावों में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई. पाखंडो पर यकीन रखने वाले लोग मानते हैं कि ये जीत नए चुनाव चिन्ह 'पंजे' का कमाल थी.
इस प्रसंग का जिक्र आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन भास्करराव ने अपनी जीवनी में विस्तार से किया है. उनके अनुसार यह 1978 की बात है.
बहरहाल , इधर कुछ सालों में कई बार कांग्रेस के चुनाव चिन्ह को जब्त करने की चर्चा जोर पकड़ती रही है. लेकिन कांग्रेस ने अपने हाथ के पंजे वाले चुनाव चिन्ह को बरकरार रखा है. चुनाव आयोग ने भी तमाम आपत्तियों के बावजूद इसे जब्त करने की जहमत नहीं उठाई है.
अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस का चुनाव चिन्ह पाखंड और साम्प्रदायिकता का जीता-जागता उदाहरण नहीं है ? भले ही ऊपरी तौर पर देखने में ऐसा न हो लेकिन वर्तमान चुनाव चिन्ह के मूल में तो यही बातें नज़र आती हैं. अगर कांग्रेस का दावा है कि वह साम्प्रदायिकता और पाखंड की राजनीति के विरुद्ध है तो उसे सबसे पहले आबा-बाबा टाइप के लोगों द्वारा दिए गए अपने चुनाव चिन्ह को बदलना चाहिए. बाकी इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा और कांग्रेस मनुवादियों की 'ए' और 'बी' टीम हैं. राहुल गांधी द्वारा आरएसएस/बीजेपी को मनुवादी कहने से उनकी पार्टी का मूल चरित्र नहीं बदल जायेगा.
- Get link
- Other Apps
Comments
Post a comment