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फ़ोटो - न्यूज़ 18 |
ज्योतिबा की आयु जब 61 वर्ष थी तब उन्हें जनसेवा करते हुए लगभग 40 साल बीत चुके थे. उसी समय बम्बई के मांडवी कोलीवाड़ा में एक विशाल जनसभा आयोजित हुई जिसमें ज्योतिबा को उनके कार्यो के लिए सम्मानित किया गया.
वह 11 मई , 1888 का दिन था. सभी वक्ता एक एक कर ज्योतिबा के असाधारण धैर्य , त्याग , निष्ठा , जन सरोकार और समभाव की चर्चा कर रहे थे. किसी ने ज्योतिबा को महान व्यक्ति कहा तो किसी ने मानवता की साक्षात मूर्ति. कई लोगों का कहना था कि ज्योतिबा महाराष्ट्र के आदिपुरुष हैं.
उसी समय सभा में श्री विठ्ठल राव वाडेकर उठे और उन्होंने बोलना शुरू किया. उन्होंने कहा , " ज्योतिबा की उग्र तपस्या के कारण महाराष्ट्र के स्त्री-पुरूषों को मानव अधिकारों , जागृति और चेतना की स्थायी धरोहर मिल पायी है. इसलिये ज्योतिबा सच्चे महात्मा हैं. हम सभी उपस्थित जन ज्योतिबा को सदिच्छा से महात्मा की उपाधि प्रदान करते है "
इस बात पर देर तक तालियाँ बजती रही. लोगों ने अपनी तालियों और उत्साह के साथ इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी.
ज्योतिबा आस्तिक थे. वह खड़े हुए और उन्होंने विनम्र भाव से कहा " यह अल्प-सा कार्य मैनें ईश्वर की प्रेरणा से किया है. मैं आज तक यही मानता रहा हूँ कि जनसेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है और आगे भी यही करता रहूंगा. आप सभी लोग सत्यशोधक समाज के कार्य में सहायता देकर इसे आगे बढ़ा रहे है. जिन्हें हजारो वर्षो से शुद्रातिशुद्र समझा जाता रहा है उन्हें मानव अधिकार दिलाने को ही मैं धर्म मानता हूँ. यही हर एक का कर्तव्य है. मैनें कोई विशेष कार्य नहीं किया है लेकिन जो कार्य मैंने किया है , वह केवल कर्तव्य समझकर किया है. "
इसके बाद सभास्थल पुनः जनसमूह की तालियों से गूंज उठा. उसी दिन के बाद से ज्योतिबा की ख्याति महात्मा के रूप में हुई.
ज्योतिबा भारत में महात्मा की उपाधि पाने वाले सबसे पहले जननेता थे. गांधी दूसरे जननेता थे जिन्हें रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा महात्मा की उपाधि दी गयी.
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