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By - नवनीत मिश्रा
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मुन्ना बजरंगी की फोटो- Ashish Srivastava |
तकरीबन सात साल पहले की बात है। उस दिन जौनपुर जिला अदालत में मुन्ना बजरंगी की पेशी थी। गुर्गों ही नहीं खैरख्वाहों' से कचहरी परिसर भरा पड़ा था। तमाम वे लोग भी मुन्ना को देखने पहुंचे थे, जिनकी निगाह में अपने तिलिस्म की वजह से वह कौतुक बना हुआ था। 2009 में मुंबई में पुलिस के सामने सरेंडर करने के बाद से जब भी जौनपुर में उसकी पेशी होती थी, तो हर बार नजारा कुछ ऐसा ही होता था।
एक ट्रेनी आइपीएस (वर्तमान में एक जिले में एसपी) की निगरानी में उस दिन पेशी होनी थी। तमाम गुर्गे मुन्ना से मिलने की कोशिश कर रहे थे। यह देख ट्रेनी आइपीएस ने काफी सख्ती बरती। फटकार लगानी शुरू कर दी। गुर्गों को झिड़क कर दूर हटने को कहा। 28 साल के यंग पुलिस अफसर ने मुन्ना की तरफ भी आंखें तरेरी, कहा-कस्टडी में हो, ठीक से बर्ताव करो।मनमर्जी नहीं चलेगी।
यह देखकर मुन्ना ने कहा-सुनो,....अंबेडकरनगर के उसी गांव के रहने वाले हो न, अभी बच्चे हो, ज्यादा न उड़ो। आइपीएस सन्न रह गए कि अभी चंद दिनों जौनपुर में पोस्टिंग हुई है, इसे मेरे गांव.. के बारे में कैसे मालुम।अफसरों को दबाव में लाने के लिए उनके गांव-देश के बारे में जिक्र कर भी दबाव मे लाने की कोशिश करता था मुन्ना। हर पैंतरे आजमाता था।
हालांकि मुन्ना की बात का उस आइपीएस पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
(तब नवनीत जी जौनपुर जागरण में थे, यह बात उन्हें उस दिन पेशी कवर करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताई थी, जो उस संवाद के गवाह थे)
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