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By - नवनीत
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फ़ोटो - गूगल |
कबड्डी की जिस शानदार खिलाड़ी शैलजा को 2008 में भारतीय महिला टीम का कोच बनने ही नहीं दिया गया था, उसी खिलाड़ी के मार्गदर्शन में ईरान की टीम ने भारत को हराकर एशियाड में सोना जीता। शैलजा की न देशभक्ति में कोई कमी थी और न जज्बे में. दामन भी पूरा पाक साफ था। मगर खेल संघों की गंदी राजनीति ने इस प्रतिभा का गला घोंट दिया।
भारत में वैसे भी क्रिकेट से इतर खेलों के खिलाड़ियों को कौन पूछता है, ऊपर से रिटायर्ड खिलाड़ियों के लिए हालात और बुरे हैं। जीवनयापन में तमाम परेशानियां और फांकाकशी जैसी स्थिति से दो-चोर होना पड़ता है।
अपने देश की टीम को निखारने का मौका नहीं मिला तो यह खिलाड़ी खाली बैठी थी। अचानक, पिछले साल ईरान ने इस खिलाड़ी की प्रतिभा की कद्र करते हुए अपने देश की टीम का कोच बनने का प्रस्ताव भेजा। शैलजा के पास कोई चारा न था, सो प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. फिर जुट गईं ईरान की टीम की धार तेज करने और खिलाड़ियों को निखारने में।
आज दुनिया ने शैलजा की धमक महसूस की, जब ईरान ने सोना जीता। हारने वाली टीम वो भारतीय टीम रही, जिसके खेल प्रशासकों ने कभी शैलजा को कोचिंग के काबिल ही नहीं माना था। भारत की हार और ईरान की जीत पर शैलजा फूट-फूटकर रो पड़ीं। उन्होंने कहा-भारत की हार पर एक भारतीय के तौर पर दुखी हूं, मगर खेल और कोच की हैसियत से ईरान की जीत से खुशी। एक बार फिर मैने साबित किया कि मैं भारत की सर्वश्रेष्ठ कोच हूं।
देश में प्रतिभाओं की कितनी कद्र है, बानगी हैं कबड्डी खिलाड़ी शैलजा। इस केस से यह सवाल का भी जवाब मिलता है कि क्रिकेट छोड़ बाकी खेलों में भारत फिसड्डी क्यों है ? ओलंपिक आदि आयोजनों में हम नीचे से क्यों टॉप करते हैं? ओलंपिक में एक अदद कांस्य के लिए भी हम क्यों तरसते हैं ?
जब देश में प्रतिभाओं की यह कद्र है तो फिर पदकों का रोना क्यों ?
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