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फ़ोटो - जागरण |
किसी मीडियाकर्मी का नौकरी से निकाला जाना लोकतंत्र के लिए खतरा है. लेकिन उससे भी बड़े कई खतरे हैं जिससे हमारा लोकतंत्र जूझ रहा है. बावजूद इसके इन खतरों पर कोई हो-हल्ला नहीं हो रहा है. क्योंकि इस देश में एक व्यक्ति की नौकरी दूसरे कई व्यक्तियों के जान की कीमत से ज्यादा मायने रखती है.
सोचिये , अगर किसी राज्य में ऐसा हो कि कोई व्यक्ति जिसके पास पैसे हों और वह बाकायदा पुलिस से 7-8 लाख रुपये में किसी भी दलित , पिछड़े और मुसलमान की दिनदहाड़े हत्या करवा दे और मृतक को ही अपराधी ठहरा दे तो ? आप इसे लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा मानेंगे या नहीं ?
उत्तर प्रदेश में इस वक्त यही हो रहा है.
कल यूपी के डीजीपी ने पैसे लेकर एनकाउंटर करने वाले तीन पुलिस वालों को सस्पेंड किया है. ये पुलिस वाले निर्दोष लोगों की पैसे लेकर हत्या करने को तैयार थे. आजतक के स्टिंग में दिखाया गया है कि एक पुलिस वाला 8 लाख रुपये में किसी की भी हत्या करने के लिए तैयार हो गया था. यह सब किसकी खुली छूट के चलते हो रहा है , इस बारे में अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है.
सत्ता में आने के बाद बीजेपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने पुलिस को खुली छूट दी थी कि वो अपराधियों का एनकाउंटर करें. खासकर उनका जो दलित , पिछड़े या मुसलमान हैं. लेकिन पुलिस अपराधियों का एनकाउंटर करने की बजाय निर्दोष दलित , पिछड़े और मुसलमानों की हत्या करने लगी. इस पर विपक्ष समेत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग , माननीय सुप्रीम कोर्ट और कई मानवाधिकार संगठनों के सवाल उठाने के बाद योगी सरकार की काफी किरकिरी भी हुई. आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल की याचिका पर योगी सरकार को बाकायदा निर्देश दिया कि -
1. हर एनकाउंटर की तुरंत एफआईआर दर्ज हो, जब तक जांच चले, तब तक संबंधित पुलिस अधिकारी को प्रमोशन या गैलेंट्री अवॉर्ड न मिले.
2. पुलिस मुठभेड़ के मामले में एफआईआर दर्ज कर इसे तत्काल मजिस्ट्रेट को भेजना भेजे. अगर पीडि़त पक्ष को लगता है कि एनकाउंटर फर्जी था तो वह सेशन कोर्ट में केस दर्ज करा सकता है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ों पर व्यापक गाइडलाइंस जारी की जिन्हें सेक्शन 144 के तहत एक कानून माना जाता है.
लेकिन योगी सरकार द्वारा फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ ऐसा कोई एक्सन नहीं लिया गया जिससे यह लगे कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लेकर गंभीर दिख रही है. उल्टे यहां बीजेपी और योगी की अगुवाई में सत्ता का जंगलराज कायम किया जा रहा जिसमें अपराधियों को ठिकाने लगाने के नाम पर पैसे लेकर निर्दोष लोगों की हत्या की जा रही है.
अफसोस की बात है कि लोकतंत्र की दुहाई देने वाले मीडिया के बड़े नाम भाजपा-योगी के जंगलराज पर पर कुछ भी लिख-बोल नहीं रहे हैं. किसी भी न्यूज चैनल पर यह खबर नहीं चल रही है कि यूपी में जंगलराज कायम है. तमाम सवर्ण प्रगतिशील भी इस मुद्दे पर धूर्तता के साथ चुप्पी साधे हुए हैं.
इन सभी को लोकतंत्र पर खतरा और यूपी का जंगलराज शायद तब दिखता जब यहां कोई दलित-पिछड़ा या मुसलमान मुख्यमंत्री होता.
या फिर फर्जी एनकाउंटर में हर दूसरे दिन कोई सवर्ण मारा जाता.
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