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By - अमित मंडलोई
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फ़ोटो - गूगल |
द्रविड राजनीति के सबसे बड़े चेहरे एम करुणानिधि ने आज अपनी जीवन निधि समेटकर महाप्रयाण कर लिया। 14 वर्ष की आयु में राजनीति से जुड़े इस कलाईनार (कला के विद्वान) ने सियासी और निजी जिंदगी में जिस खूबसूरती के साथ विरोधाभासों को साधा है, उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती। आंदोलन की कोख से जन्में और सामाजिक विषमताओं के खिलाफ एक मुखर आवाज होकर भी वे तमाम सियासी तिकड़मों के माहिर खिलाड़ी रहे हैं।
उनकी जिंदगी के सबसे बड़े विवाद से शुरू करते हैं। रामसेतु को लेकर उठे विवाद के बीच उन्होंने राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। सदन में सिंह गर्जना की, कहते हैं-17 लाख साल पहले कोई व्यक्ति हुआ है। उसने यह सेतु बनाया है। वह कौन था, क्या था और उसकी मौजूदगी का क्या प्रमाण है, मैं नहीं जानता। उनके इस बयान को लेकर खासा विवाद हुआ, लेकिन निजी जिंदगी में खुद करुणानिधि वृहस्पति गृह के प्रकोप से खुद को बचाने के लिए हमेशा अपने साथ पीला कपड़ा रखते थे।
उन पर लिट्टे से समीपता के आरोप लगे तो वे विचलित नहीं हुए। खुलकर स्वीकार भी किया कि लिट्टे प्रमुख मेरे भाई जैसे हैं, लेकिन सियासी चतुराई दिखाते हुए यह कहने से भी नहीं चूके कि राजीव की हत्या करने वालों को देश कभी माफ नहीं करेगा। कला और साहित्य में पैठ का उन्होंने पूरा लाभ उठाया। 75 फिल्मों की पटकथा, 100 से अधिक किताबें लिखीं। फिल्म पराशक्ति के जरिये ही द्रविड राजनीति की आइडियोलॉजी को जमीन दी।
अपने कलाकर्म के जरिये उन्होंने विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता, जमींदार प्रथा और धार्मिक पाखंड का विरोध किया। उनके दो नाटकों पर पाबंदी भी लगी। इन सबने ही उनकी कलाईनार की छवि को मजबूत किया। बावजूद इसकी 1989 में भरी विधानसभा में जयललिता की साड़ी खींची गई। द्रविड़ आत्मसम्मान के लिए लडऩे वाला, सामाजिक उत्थान का दम भरने वाले करुणानिधि के चेहरे का वस्त्र भी इसके साथ ही खींच गया।
शुरुआत में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वे ऐसे समुदाय से संबंध रखते थे, जो नादस्वरम बजाने का काम करता है। वे यह वाद्य सीखने के लिए मंदिर भी जाते थे। वहां उन्हें जातिभेद के कारण उन्हें कमर के ऊपरी भाग में कपड़ा पहनकर आने की इजाजत नहीं थी। यहां तक कि उन्हें संगीत का ज्ञान भी उसी अनुसार दिया जाता था।
यहीं से उनके भीतर प्रतिरोध का बीज पड़ा। बाद में वे द्रविड आत्मसम्मान की लड़ाई का बड़ा चेहरा बन गए। एक भाषण से प्रेरित होकर महज 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने राजनीति में कदम रखा। हिन्दी विरोधी आंदोलन में सक्रिय रहे। एक गांव का नाम सीमेंट फैक्ट्री के नाम करने का भी विरोध किया। टे्रन रोक दी, पटरियों पर लेट गए।
जब खुद सत्ता में आए तो उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे। सरकारिया कमीशन ने वीरानम प्रोजेक्ट के निविदा आवंटन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। फ्लाइओवर निर्माण में आरोप लगे, गिरफ्तार हुए। उन पर दस्तावेजों में गड़बड़ी, आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी, विश्वास का आपराधिक हनन, भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत कई मामले चले। हालांकि अधिकतर में सबूत नहीं मिले, लेकिन हकीकत किसी से छुपी भी नहीं रह सकी।
समाजवाद ही उनके आंदोलन की नींव में था, लेकिन पूरी जिंदगी वे परिवार को पोषित करने में लगे रहे। तीन पत्नियों से उत्पन्न चार बेटे और दो बेटियों पर खुलकर उपकार किए। व्यापार-व्यवसाय से लेकर सियासत में उन्हें स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि डीएमके में उनके लिए चुनौती बन सकने वाले वाइको को अवसर देने की गलती नहीं की।
वे पांच कार्यकाल में 6883 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। 60 वर्ष के राजनीतिक करियर में चुनावी रण में कभी पराजित नहीं हुए। लेकिन बेटों के बीच सियासी संघर्ष को रोक नहीं पाए। बड़े बेटे को पार्टी से निकालने से भी परहेज नहीं किया। उसी बेटे अलागिरी ने उत्तराधिकारी बनाए गए बेटे स्टालिन के कुछ दिन में मर जाने की घोषणा तक कर दी थी।
46 वर्ष बाद जब उन्होंने चश्मा बदलना चाहा तो 40 दिन तक पूरी दुनिया का बाजार खंगाला गया। अंतत: जर्मनी से उनके लिए चश्मे की फे्रम मंगाई गई। निजी जिंदगी में वे नियमित योग करते थे। सादा भोजन लेते और पैदल चलते थे। 50 वर्ष तक रोज पार्टी कार्यकर्ताओं को चिट्ठी लिखते थे। अपना घर दान कर चुके हैं, उनके बाद अब उस जगह गरीबों के लिए अस्पताल बनेगा। करुणानिधि एक ही व्यक्तित्व में राजनीति के दोनों चेहरे पेश करते हैं। उनके बीच इस हद तक समन्वय करने वाला शायद ही कोई कलाईनार हमें दूसरा मिल पाए।
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