- Get link
- Other Apps
- Get link
- Other Apps
By - सूरज मौर्या
हमारे देश में कर्ज में डूबा किसान मौत को गले लगाता हैं तो वहीं कर्ज में डूबे बड़े व्यपारी विदेश में कोल्ड काफी पी रहा होता हैं।
भारत एक कृषि प्रधान देश हैं। अंग्रेज़ो के चले जाने के बाद अगर इस तरह देश में कुछ बचा था तो वो था सिर्फ कृषि। जिसके चलते भारत ने फिर से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया और खुद को अंतरराष्ट्रीय देशों के बीच खड़ा किया।
भारत एक कृषि प्रधान देश है ये सिर्फ आज कागजों पर हैं जो स्कूल में अब बच्चें भूगोल की किताबों में पढ़ते हैं और बड़े हो जाने पर उन्हें पता चलता हैं कि इस देश में किसानों की क्या हालत हैं।
किसानों की हालात के बारे में रूबरू करवाते हुए आपको ले चलता हूँ राजस्थान। हाँ रेत की कश्मीर में। जहाँ एक किसान ने आत्महत्या कर ली हैं। आत्महत्या की वजह हैं कि उसके ऊपर बैंक का बकाया था और बकाया न चुका पाने की वजह से बैंक उसके ज़मीन की कुर्की कर रही थी। जिस वजह से उसने मौत को गले लगा लिया।
मामला राजस्थान के नागौर जिले के चारणवास गांव का है। यहां के 30 साल के शारीरिक रूप से अक्षम किसान मंगल चंद ने 4 अगस्त की रात फंदे से लटककर खुद को खत्म कर लिया।
मंगल की मौत से इलाके के किसानो में रोष हैं सभी परिजनों के साथ हड़ताल पर हैं और मंगल के परिवार को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देनी की मांग पूरी होने पर ही अंतिम संस्कार करने की बात कही हैं।
![]() |
मंगल चंद ( फ़ोटो - द वायर ) |
प्रसाशन से कई दौर की वार्तालाप के बाद मंगल के कर्ज को मांफ कर दिया गया। जमीन की नीलामी की भी बात की निरस्त कर दिया गया। इसके साथ ही बैंक कर्मीयों के खिलाफ जांच की भी सहमति बनी। अधिकारियों ने परिवार को मुआवजा, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान और मंगल की भाभी को आंगनबाड़ी में नौकरी देने की बात भी कही।
मंगल ने 2010 में अपने भाइयों के साथ मिलकर किसान क्रेडिट कार्ड की मदद से पंजाब नेशनल बैंक से 2.98 लाख का कर्ज लिया था। इस कर्ज का उपयोग उसने जमीन को समतल करने और खाद - बीज में खर्च किया। लेकिन फिर भी अच्छी उपज नहीं हुई।
चंदन ने अपने भाइयों के साथ मिल कर घर ले खर्च में कटौती कर बैंक में 1.75 लाख जमा करवा दिये। द वायर के मुताबिक चंदन के छोटे भाई पूरण बताते हैं, ‘हमने 1.75 लाख रुपये का लोन चुका दिया. बाकी लोन भी चुका देते मगर खेती में कुछ बच नहीं रहा। पिछले तीन-चार साल से लागत भी नहीं निकल रही।'
वे आगे कहते हैं, ‘बैंक का लोन चुकाने के लिए ही मेरे दोनों बड़े भाई पांच-छह महीने पहले मजूदरी करने परदेस गए। मंगल बैंक वालों को बार-बार यही कह रहा था कि वे दोनों आएंगे तो पैसा जमा करवा देंगे मगर बैंक वाले नहीं माने।'
पूरण के अनुसार पिछले एक महीने से बैंक वालों ने बहुत ज्यादा सख्ती कर रखी थी। वे कहते हैं, ‘रिकवरी वाले आए दिन आकर धमकाते थे। बैंक से बार-बार नोटिस मिल रहे थे। बैंक ने 10 जुलाई तक बाकी पैसा जमा नहीं करवाने पर जमीन कुर्क होने का नोटिस भेजा। मंगल ने बैंक वालों के खूब हाथ जोड़े मगर उन्होंने एसडीएम साहब से कुर्की का आदेश करवा लिया।'
वहीं, बैंक मैनेजर नंदलाल के मुताबिक मंगल के परिवार को दिया गया कर्ज चार साल पहले ही एनपीए घोषित हो चुका है। वे कहते हैं, ‘बैंक की ओर से मंगल को धमकाने की बात गलत है। बैंक ने लोन वसूली सामान्य प्रक्रिया के तहत एसडीएम कोर्ट, नावां में जमीन कुर्क करने का आवेदन किया, जिस पर 7 अगस्त को जमीन निलाम करने का ऑर्डर हुआ।'
उपखंड अधिकारी रामसुख भी इसी बात को दोहराते हैं। वे कहते हैं, ‘बैंक ने जो तथ्य सामने रखे उनके आधार पर जमीन कुर्की का इश्तिहार जारी किया। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। आए दिन ऐसा होता है। इसे राजनीतिक रंग देना गलत है। मंगल चंद की आत्महत्या का मुझे भी दुख है।’
मंगल चंद ने पंजाब नेशनल बैंक से 2.98 लाख रुपये का क़र्ज़ लिया था। 1.75 लाख रुपये जमा करवाने के बावजूद बैंक 4.59 लाख रुपये मांग रहा था। उन्होंने कयी जगहों से पैसे जमा कर बैंक को देने की कोशिश की लेकिन पैसे का जुगाड़ कहीं से भी नहीं हो पाया।
द वायर में छपी खबर के अनुसार, ' किसान क्रेडिट कार्ड के अंतर्गत समय पर पैसे नहीं जमा करने पर पेनेल्टी लगती हैं और लोन के NPA हो जाने पर अतिरिक्त ब्याज लगता हैं। मंगल के परिवार को बकाया और ब्याज के लिए कई बार नोटिस भेजा गया था।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 12 फरवरी को अपनी सरकार के अंतिम बजट में किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी। सरकार के मुताबिक वह किसानों का 8 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर चुकी है।
मंगल के भाई पूरण के अनुसार उन्हें वसुंधरा सरकार की ओर से घोषित कर्जमाफी का भी कोई लाभ नहीं हुआ। वे कहते हैं, ‘हमने पटवारी, तहसीलदार और बैंक मैनेजर से कई बार कहा कि सरकार ने जितना लोन माफ किया है उतना तो कम कर दो, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी।’
मंगल चंद पिछले पांच महीने से बैंकों से राहत की मांग कर रहे थे। उनकी मौत के बाद अब उन्हें बैंको और प्रसाशन ने राहत दे दी हैं। अब न तो उनकी जमीन की नीलामी होगी और न ही बैंक वाले कभी कर्ज का तकादा करने आएंगे।
Reactions:
- Get link
- Other Apps
Comments
Post a comment