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Photo - google |
ये एक शवयात्रा का दृश्य है। जैन मुनी तरुण सागर की शवयात्रा। कहते हैं कि जैन धर्म की मूल जड़ सनातन हिन्दू धर्म से ही जुड़ी है। इसका उदय सिख पंथ की तरह हिन्दू धर्म के आडंबरों से मुक्ति पाने के लिए हुआ था।
मगर क्या इस तस्वीर में शवयात्रा का ये तरीका किसी घोर धार्मिक आडंबर से कम है? क्या समय के साथ सभी धर्मों को देश दुनिया के सामाजिक परिवर्तन के साथ खुद को इतना भी अपडेट नहीं करना चाहिए?
क्यों हर धर्म और उसके अनुयायी पढ़ने-लिखने के बावजूद आज भी लकीर के फ़क़ीर बने फिरते हैं? क्यों हर धर्म समुदाय के ठेकेदारों ने समय के साथ उसी नई व्यवस्थाओं को स्वीकार किया जो उनके अनुकूल थी और बाकि को हराम और हलाल, धार्मिक और अधार्मिक कृत्य में वर्गीकृत कर दिया?
क्या ये अपने आप में धर्म के नाम पर धर्म के साथ किसी छलावे से कम है कि आज भी मौलाना फतवे जारी कर मुसलमानों को ये बताते हैं कि इंश्योरेंस पॉलिसी न बनवाएं इस्लाम में ये हराम है।
क्यों आज भी जीव हत्या को धार्मिक आधार पर सही और गलत बताया जाता है। जो हिन्दू धर्मलम्बी गौ हत्या को पाप बताते हैं वो विजयदशमी के दिन भैंसे की बलि अपनी देवी को चढ़ाते है?
वैसे ताज़ा आंकड़े तो बताते हैं कि भारत के जैनी लोग भारत के उस समुदाय से वास्ता रखते हैं जो सबसे अधिक 94.1% साक्षर है। आपको पता होना चाहिए कि साक्षरता का ये प्रतिशत हमारी राष्ट्रीय साक्षरता दर 65.38% से भी काफी अधिक है।
वहीं अगर बात सिर्फ जैन समुदाय की महिलाओं की साक्षरता दर 90.6% की करें तो ये भी देश के बाकि धर्म, समुदायों की महिलाओं की वर्तमान साक्षरता जिसे आप राष्ट्रीय महिला साक्षरता दर भी कहते हैं, 54.16% से भी बहुत आगे है।
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