- Get link
- Other Apps
- Get link
- Other Apps
निर्माताः भूषण कुमार
निर्देशकः श्रीनारायण सिंह
सितारेः शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर, दिव्येंदु शर्मा, यामी गौतम
'बत्ती गुल मीटर चालू' देखी। शुरुआत के 15 मिनट अझेल हो गए। अतिरिक्त 'बल' इतनी जगह लगा था कि हाए मेरी पहाड़ी आत्मा रो पड़ी। ऐसा लग रहा था कि पहले ये स्क्रिप्ट हिंदी में लिखी गई और उसके बाद बल और ठैरा का पहाड़ी तड़का लगाया गया और राइटर को लगा कि आ गया पहाड़ी फ्लेवर।
एक लोकल आदमी से भी हेल्प ले लेते तो ये डायलॉग इतने उटपटांग न लगते। जहां से शाहिद का कैरक्टर इंट्रोड्यूस हो रहा है, वहां वो एक शब्द यूज़ करते हैं- मारगाँठ। मारगाँठ शब्द मैंने इससे पहले मनोहर श्याम जोशी की 'कसप' में पढ़ा था। मैंने अपनी ज़िंदगी में साधारण बोलचाल में 'मारगाँठ' शब्द नहीं सुना साधारण बोलचाल में। मेरे साथ एक गढ़वाली दोस्त भी मूवी देख रहे थे, उन्होंने भी ये कभी नहीं सुना था। तो मुझे ये भी एक संभावना लगी कि पढ़ के जितनी पहाड़ी समझी जा सकती थी और जोड़ी जा सकती थी, वो जोड़ी गई। इसलिए वो थोड़ी अलग लगी। क्योंकि अगर ये स्क्रिप्ट थोड़े से अनुभव और रिसर्च के साथ लिखी गई होती तो उन्हें पता चलता कि पहाड़ी ठहरा बोलते ही नहीं, ठैरा बोलते हैं। बल लगाने की भी एक जगह होती है। ये फिल्म मेरा पूरा मूड ऑफ कर सकती थी अगर कहानी दमदार न होती और मुद्दा भी हकीकत न होता।
ये सच है कि पहाड़ों में बिजली खपत से बहुत कम मिलती है। बिजली की कटौती होती है और बिल सबका बहुत ज़्यादा होता है। बिजली चोरी भी आम बात है। एक और चीज़ जो मुझे सबसे मज़ेदार लगी वो थे विकास और कल्याण नाम के मेटाफर कैरक्टर जो ये कहानी सुनाते हुए पहाड़ की 'बस' से गिर जाते हैं और किसी तरह उठने की कोशिश करते हैं।
'ये ठैरे बढ़िया दिन, बहुत बढ़िया दिन हैं ये' कहकर 'अच्छे दिन' पर भी निशाना साधा गया है। वैसे अब ये आम हो चला है। हर फिल्म में 'अच्छे दिन' और 'स्वच्छता अभियान' पर कॉमेन्ट करना, पॉजेटिव या नेगेटिव। कहानी अपनी सी लगने लगती है कि हर फिल्म की तरह कोर्टरूम ड्राम हकीकत से परे दिखाया जाने लगता है। कोर्ट में तालियां बज रही हैं, जज स्कोर पूछ रही है, वकील दूसरी वकील की साड़ी पकड़ रहा है, वकील के पर्स से से अश्लील साहित्य निककल रहा है। पर एक बात जो मुझे नई जानने को मिली। वो ये कि जो बिजली के मीटर में लाल बत्ती दिन भर जलती रहती है, वो क्यों लगाई जाती है। आप अगर अब तक नहीं जानते तो आपको भी जानकर हैरानी होगी।
कुल मिलाकर फिल्म लौकी की खीर की तरह थी, खीर स्वादिष्ट थी लेकिन पहाड़ी भाषा के साथ किया खिलवाड़ दांतों में लौकी के रेशे की तरह फंस गया। जिसे निकालने के लिए टूथपिक की जरूरत पड़ेगी। खीर निगलने के बाद भी ये रेशा चुभता सा रहता है।
Reactions:
- Get link
- Other Apps
Comments
Post a comment