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गोलगप्पे की दुनिया : रस्तोगी चाट भंडार, बनारस
यह है गोलगप्पे-चाट की मेरी दो दशकों से पसंदीदा दुकान रस्तोगी चाट भंडार। पांडेयपुर से सारनाथ जाने वाली सड़क पर पहड़िया चौराहे के ठीक पास ही लगता है रस्तोगी भाइयों का चाट का यह ठेला। मेरे स्कूली दिनों में यह ठेला पहड़िया के प्राइमरी स्कूल के सामने लगा करता था। पहड़िया जिसका पुराना नाम ‘पिसनहारी’ भी है। बता दूँ कि कथासम्राट प्रेमचंद ने, जिनका गाँव लमही यहाँ से अधिक दूर नहीं, पिसनहारी पर एक मार्मिक कहानी भी लिखी थी, जिसका शीर्षक है ‘पिसनहारी का कुआँ’।
तो बात रस्तोगी चाट भंडार की, गोलगप्पे और चाट की। पान लगाने की तरह ही गोलगप्पा भरना और खिलाना, और चटपटी चाट बनाना भी एक कला है। और रस्तोगी बंधु इस कला के पारखी। भीड़ कितनी भी क्यों न हो, एक पहुँचे हुए कलाविद की तरह रस्तोगी बंधु पूरी तन्मयता के साथ अपने ग्राहकों को गोलगप्पे, चाट और आलू टिकिया खिलाने में लगे रहते हैं। और चार-पाँच घंटों के भीतर ही उनकी सारी सामग्री ख़त्म हो जाती है। पिछले दो दशकों से ऐसा ही होता आया है। जितनी भीड़ खाने वालों की, उतनी ही भीड़ गोलगप्पे, चाट और टिकिया पैक कराकर ले जाने वालों की।
अब कुछ बातें गोलगप्पे की शब्द-यात्रा के बारे में। अजित वडनेरकर ने अपनी किताब ‘शब्दों का सफर’ में इनके बारे में लिखा है : “मैदे की लोई को जब छोटे आकार में बेला जाता है तो तलने पर ये फूल कर कुप्पा हो जाती हैं इसीलिए इन्हें गोलगप्पा भी कहते हैं। इन्हें पानी पताशा, पानी पतासा भी कहते हैं जो शुद्ध रूप में पानी बताशा है मगर मुख-सुख के सिद्धांत पर पानी के साथ पताशा शब्द चल पड़ा। मुंबई की चौपाटी पर भेलपुरी प्रसिद्ध है। मज़े की बात यह कि भेलपूरी में खस्ता पूरी को कुचल कर परोसा जाता है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में इन्हें फुलकियां भी कहा जाता है।”
जगहें बदलीं तो नाम भी बदलते गए, बंगाल में गोलगप्पा पहुंचा तो ‘फुचका’ बन गया, वहीं से कुछ और आगे सिल्हट और चटगांव की ओर बढ़ा तो ‘फुचका’ बेचारा ‘फुसका’ बन गया।
इसका एक और प्रचलित नाम पानी पूरी भी है। जिसके बारे में अजित वडनेरकर लिखते हैं : “पानी पूरी को भी पूरा जाता है अर्थात इसमें भी स्टफिंग होती है मगर पकाने से पहले नहीं बल्कि इसे खाने के वक्त। इसकी खास स्टफिंग है पानी। इसे फोड़ कर इसमें पानी भरा जाता है। कुछ उबले आलू-बूंदी का नाम मात्र का मसाला भी साथ में होता है। असल भरावन पानी की होती है जो खट्टा-तीखा, खट्ठा-मीठा या सिर्फ मीठा हो सकता है। इसीलिए इसे पानीपूरी कहा जाता है।”
तो कभी सारनाथ जाएँ तो रस्तोगी चाट भंडार को भी एक मौका दें।
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