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बिहारीयो की गुजरात में हुई पिटाई का मैं समर्थन करता हूँ , इनको हर जगह ऐसे ही कूटना चाहिये। एक दिन मैं भी चाहता हूँ कि दिल्ली का कोई खुराना/सूद/टंडन मुझे भी मारे और दिल्ली छोड़ जाने की धमकी दे , ऐसा जिस दिन होगा , मैं शायद बिहार चला जाऊँ , ‘शायद’ इसलिये क्यूँकि स्वभाव से मैं थुथुर हूँ।
शहर और सभ्यता का जितना बँटाधार पलायन ने किया है , उतना किसी ने नहीं किया। हम अपना कल्चर जितना लोगों को बताते नहीं है, उससे ज़्यादा दूसरों का कल्चर अपने कल्चर में मिलाकर उसकी बैंड बजा देते है।
मैं बिहारीयो की पिटाई की ख़ुशी तब से मना रहा हूँ जबसे बिहार की शादियों में DJ फ़्लोर लगने लगे , दूल्हा दुल्हन ऊँचाई पे जाकर फूलो की बारिश में एक दोनो को माला पहनाने लगे और खाने में पनीर को अचानक लोग महत्ता देने लगे , मैं उस दिन से रोज़ चाहता हूँ की बिहारीयों को तबियत से कूटा जाये।
मैं चाहता हूँ कि एक दिन पलायन कर गये सारे बिहारीयों को एक जगह इकट्ठा किया जाये और उसके बाद उसमें से मैथिल और मैथिल संघियो को चिन्हित किया जाये। चिन्हित करने के बाद बचे बिहारीयो को पिटने के लिये फिर महाराष्ट्र और गुजरात भेज दिया जाये और मैथिल व मैथिल संघियो को गुजरात मॉडल का फ़्लेक्स बैनर ओढ़ा के ढंग से कूटा जाये।
पलायन कर के गुजरात और मुंबई में बसने वाले बिहारीयो को हफ़्ते में एक बार कुटाई होना ज़रूरी है ताकि इनके ज़बान पे लगा हुआ जंग झड़े और तब जाकर उसमें इतनी क्षमता आए कि वो नीतीश का कॉलर पकड़े और उससे पूछे कि बुड़बक तुम पंद्रह साल से कर क्या रहे हो ?
मैथिलो को कूटने के बाद उनके पैरों में पायल बाँध दे और छोड़ू छोड़ू नै सैंया पार नाचने के लिए छोड़ दिया जाये और रात को उनको फोन दे दिया जाये ताकि वो रानी झा को अश्लीलता के लिये गरिया सके।
मोदी जी के इस उपकार को मैं नहीं भूलूँगा , 2019 में बटन कमल का ही दबाऊँगा।
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