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अब जगजाहिर है कि फिल्म अंधाधुन में आयुष्मान खुराना अंधे होने की एक्टिंग करते हैं. वो अंधे नहीं हैं, इस बात को पकड़ने के लिए जासूस होने की जरूरत नहीं है. एक बच्चा भी पकड़ लेता है, जिसे वो रोज धोखा देते रहते हैं. सबके हाथ में मोबाइल फोन है. हालांकि दर्शकों को आयुष्मान शुरुआत में ही बता देते हैं कि वो अंधे नहीं हैं.
बॉलीवुड में अंधों को लेकर बनी क्राइम थिलर फिल्मों में नॉर्थ इंडिया के दर्शकों को ‘मोहरा’ के नसीरुद्दीन शाह याद रहते हैं, जो कि अंधे होने का नाटक करते रहते हैं. नसीर फिल्म स्पर्श में भी अंधे बने थे, पर वो फिल्म अंधेपन को लेकर सेंसिटिव थी. थ्रिलर फिल्मों में कत्ल, वादा, लफंगे-परिंदे, आंखें और हाल की ऋतिक रोशन अभिनीत काबिल थीं, जिनमें मुख्य पात्र अंधा था. पर ये थ्रिलर फिल्में ऐसी कहानियों पर बनी थीं, जिनमें अंधे कैरेक्टर और उसके तरीकों पर ही फोकस ज्यादा था, बाकी चरित्र उसके हिसाब से बना दिये गये थे.
अंधाधुन की विशेषता है- ‘हरामी कैरेक्टर्स’ और उनके हरामीपन से उपजा हास्य. जैसे फिल्म बड़े मियां, छोटे मियां में परेश रावल का कैरेक्टर है, जो लड़की की हत्या करके पूछता है- कहां गिरी? हरामी शब्द अब जरूरत से ज्यादा चालाक और शातिर लोगों के लिए इस्तेमाल होता है. फिल्म अंधाधुन में बच्चा भी बेहद शातिर है. कुछ देर के लिए ऐसा लगा कि फिल्म ‘हरामखोर’ के दिव्यांग गोरे-चिट्टे प्यारे परंतु बेहद बदमाश बच्चे की तरह इस बच्चे का रोल भी ज्यादा होगा, पर वो एक झटके साथ खत्म हो जाता है. जैसे अन्य कई कैरेक्टर्स के साथ हुआ, जिनके रोल अचानक खत्म हो जाते हैं. हालांकि इसकी वजह भी है.
फिल्म में वही टिकता है, जो तब्बू को मात देने की क्षमता रखता है या उनका रास्ता छोड़ देता है. जो तब्बू को परास्त नहीं कर सकता, उसका कैरेक्टर फिल्म में खत्म होते जाता है.
यही वजह हो सकती है कि इतने शानदार Twists & Turns रखने के बाद भी श्रीराम राघवन फिल्म में ग्रीक नाटकों का आविष्कार Deus Ex Machina (God from Machine) का इस्तेमाल करते हैं. इस आविष्कार का मतलब है कि नाटक में कुछ ऐसी चीज ला देना, जो कहीं थी नहीं. एकदम से लानी पड़ी क्योंकि नहीं लाते तो स्थिति नियंत्रण से बाहर थी और चाह के भी कहानी को समेटा नहीं जा सकता था.
हालांकि ग्रीक नाटकों में इसका इस्तेमाल ‘भगवान’ को दिखाने के लिए किया जाता था. मशीन चलाई जाती थी और भगवान प्रकट होते थे. ये सारे नाटक ट्रेजडी वाले थे. बाद में फिल्मों में भी ये चालाकी की जाने लगी. कहानी फंसने पर कुछ तिकड़म लगा के बात खत्म की जाती थी. जैसे सुपर कमांडो ध्रुव के कॉमिक्स में उसको हमेशा कुछ ऐसा मिल जाता था कि वो जीत जाता था. हालांकि अरस्तू ने नाटकों में इस चालाकी के इस्तेमाल को मना ही किया था.
अंधाधुन में ये चालाकी एक खरगोश के माथे खेली गई है. ये खरगोश फिल्म के पहले सीन में नजर आता है. शुरू में ये बेतुका सीन लगता है, पर अंत में कहानी को अंत तक पहुंचाता है. बंदगोभी के खेत में भागता ये खरगोश बच्चों के लिये लिखी गई प्यारी सी किताब The Tale of Peter Rabbit के खरगोश की याद दिलाता है. किताब की ही तरह फिल्म में भी खेत का मालिक खरगोश के पीछे भागता है. उसी तरह स्केयरक्रो के कपड़े गिरे रहते हैं. किताब में खरगोश रिस्क तो लेता है, पर जरूरत से ज्यादा ले लेता है. पेट भर जाने के बाद भी खेत नहीं छोड़ता. उसी तरह फिल्म में भी आयुष्मान खुराना का काम तो चल ही रहा है, पर जरूरत से ज्यादा रिस्क ले लेते हैं.
फिल्म में डॉक्टर, पुलिस इंसपेक्टर, इंसपेक्टर की बीवी, इंसपेक्टर का जूनियर, लॉटरी बेचनेवाली औरत, राधिका आप्टे के पिताजी, इतने सारे कैरेक्टर ऐसे थे जिनसे खरगोश वाला काम लिया जा सकता था. जिससे थ्रिल और ज्यादा बढ़ सकता था. पहले से मौजूद लोगों से ही कोई कहानी निकाली जाती है तो ज्यादा अच्छा लगता है. हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर इंडिपेंडेंस डे में करोड़ों मील दूर से आई एलियन प्रजाति, जिनकी टेक्नॉल्जी भी बहुत आगे है, वो परास्त हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपना वायरस प्रोटेक्शन अपडेट नहीं किया था. फिल्म के अंत में स्टीव जॉब्स का नब्बे के दशक का मैकबुक इतनी छोटी सी बात पर उनको हरा देता है.
पर बात वही है कि तब्बू का कैरेक्टर इतना ज्यादा ‘हरामी’ है कि कोई तरीका काम नहीं करता. उनसे हारनेवाले सारे कैरेक्टर या तो मर जाते हैं, या उनकी कहानी रोक दी जाती है. बिना God from Machine के उनको हराया ही नहीं जा सकता था. तब्बू के कैरेक्टर को एक जगह लेडी मैकबेथ कहकर संबोधित भी किया जाता है. पर लेडी मैकबेथ भी इतनी क्रूर नहीं थी. केकड़े को उबालने वाले सीन से ही पता चल जाता है कि तब्बू क्या करनेवाली हैं फिल्म में.
आयुष्मान खुराना ने पियानो बजाने का अभ्यास किया है, बेहतरीन तरीके से उनकी उंगलियां पियानो पर चलती हैं. नहीं तो, फिल्म रॉक ऑन में अर्जुन रामपाल गिटार ऐसे बजाते हैं, जैसे गदा चला रहे हों. आयुष्मान ने अंधे के रोल को भी जबर्दस्त निभाया है. हत्या देख रहे हैं, मन में डर उपज रहा है, पर दिखाना है कि डर नहीं रहे. फ्लैट फेस रखते हुए भी डर दिख जाता है चेहरे पर. इसी वजह से तब्बू को थोड़ी मशक्कत करनी पड़ती है सच जानने के लिए.
राधिका आप्टे का कैरेक्टर कोई भी कर सकता था. धीरे-धीरे बॉलीवुड उनको टाइपकास्ट करते जा रहा है. उनसे हर फिल्म में किसिंग सीन, न्यूड सीन करवाने की कोशिश की जा रही है. राधिका आप्टे के पिताजी का रोल बड़ा रखना चाहिए था. मुझे लग रहा था कि ये कुछ करेंगे, कुछ करेंगे. शक्ल और प्रजेंस से लग रहे थे कि कुछ करनेवाले हैं.
जाकिर हुसैन जो कि डॉक्टर साहब बने हैं, उनका लीवर और किडनी के लिए पैशन अद्भुत है. इंसानों में उनको लीवर और किडनी ही नजर आती है. ये कैरेक्टर भी तब्बू से हार जाता है.
अगर श्रीराम राघवन की फिल्मों को देखें तो ‘एक हसीना थी’, ‘जॉनी गद्दार’, ‘एजेंट विनोद’, ‘बदलापुर’ सारी अनोखी फिल्में थीं. अगर इन फिल्मों को लगातार देखने के बाद अंधाधुन देखी जाए तो लगेगा कि इसके बहुत सारे सीन तो इसी रूप में आने ही थे. श्रीराम राघवन अपनी फिल्मों में एब्सर्ड सीन रखते हैं. जिनमें एक्शन तो बहुत होता है, पर नतीजा सिफर रहता है. जैसे बदलापुर में नवाज पूरा दिमाग लगाकर सब्जी की टोकरी में भाग जाते हैं पर एक पुलिसवाला राइफल से कोंच के उनको निकाल लाता है. या फिर नवाज अपने साथी अपराधी को लंगड़ा-लंगड़ा के चिढ़ाते रहते हैं. ये सारी चीजें फ्लैट फेस से की जाती हैं, इसलिए हंसी आती है. मुझे तो एजेंट विनोद भी अच्छी लगी थी. देखते वक्त मैंने लैपटॉप पर स्लो मोशन कर दिया था. नहीं तो फिल्म बहुत तेज भाग रही थी. ‘एक हसीना थी’ की कहानी मैंने बहुत पहले बचपन में मनोहर कहानियां में पढ़ी थी. बरसों बाद फिल्म में उस कहानी को देखकर बड़ा उत्साहित हुआ था कि ये तो मुझे पता था.
अंधाधुन में सस्पेंस नहीं है, थ्रिल है. हास्य खूब है. म्यूजिक जबर्दस्त है. पियानो का म्यूजिक और कई बार बैकग्राउंड म्यूजिक पुरानी फिल्मों की याद दिलाता है. कहा जा रहा है कि अमित त्रिवेदी ने पियानो के लिए लगातार बीथोवन का म्यूजिक सुना था. बीथोवन भी अंधे थे.
फिल्म में एक और रोचक कैरेक्टर है अनिल धवन का. सत्तर-अस्सी के दशक के फिल्मस्टार धवन इस फिल्म में भी सत्तर-अस्सी के ही स्टार बने हैं. यूट्यूब पर अपने गाने सुनते हैं और डेनमार्क से लिखे गये कमेंट को देखकर खुश होते हैं. अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर जिस तरह से ट्विटर पर एक्टिव रहते हैं, उससे पता चलता है कि ये वस्तुतः वास्तविक कैरेक्टर है.
शॉट्स खूब अच्छे लिए गये हैं. इंसपेक्टर का सीढ़ियों पर भागता शॉट बेहद अच्छा है. गाने भी मजेदार हैं. बस एक जगह थोड़ा सा ध्यान नहीं दिया गया. अंधे आयुष्मान राधिका आप्टे को फोन कर लेते हैं, नहीं पता कैसे कर पाते हैं. ये आप खुद खोजिएगा फिल्म में.
फिल्म मजेदार बहुत है.
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