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किसान आंदोलन के बहाने अलाउदीन ख़िलजी को याद करें
70 साल हो गए देश को आज़ाद हुए और किसान और खेती-किसानी बद से बदतर होते जा रहे हैं. तब ऐसे में पद्मावत जैसी बकवास बाजियों को भाड़ में झोंकते हुए मन में अलाउदीन ख़िलजी को लेकर आठ सौ साल बाद इसलिए इज्ज़त का भाव जागता है कि भारत के ज्ञात इतिहास में वो पहला देशी या विदेशी शासक था, जिसने किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलवाया और उन्हें इज्ज़त की ज़िंदगी दी और यह सिलसिला मुग़ल काल में बदस्तूर रहा.
किसानों की दुर्दशा शुरू हुई 18 वीं सदी में, जब मुग़ल कमज़ोर पड़े. उससे पहले यह देश खेती की बदौलत और व्यापारिक उपजों की बदौलत पूरी दुनिया में सिरमौर था. अंग्रजों ने उसी मजबूत नींव पर कुल्हाड़ा चलाया और 19 वीं सदी में यह देश पूरी तरह लुट पिट चुका था.
खेती-किसानी के प्रति हमारी अंग्रजों की गुलामी वाली ज़हनियत में आज भी किसी तरह का बदलाव नहीं है बल्कि इस देश का शासक वर्ग किसानों के संग और क्रूर व्यवहार कर रहा है. हमने किसान से हर वो सहूलियत छीन ली, जिसके चलते कृषि इस देश में हज़ारों साल से समानांतर अर्थव्यवस्था का दर्जा पाए हए थी. उसी का नतीजा है अम्बानी पांच लाख करोड़ का मालिक है और किसान जी तोड़ मेहनत के बाद भी 50 हज़ार साल नहीं कमा पा रहा.
इस देश के शासन ने तय कर लिया है कि किसानी को कारपोरेट कल्चर का जामा पहना कर गांव और खेत का परमरागत स्वरूप नष्ट कर दिया जाए.
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