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फ़ोटो - द इंडियन एक्सप्रेस |
बिसाहड़ा याद है। याद ही होगा। तीन साल पहले की ही तो बात है। 28 सितंबर 2015 की रात। जब गोकशी के शक में दादरी हत्याकांड हुआ, जिसमें इकलाख की हत्या हुई थी। मंदिर से शोर हुआ था, फ्रिज में गोमांस का। बस फिर क्या था शुद्ध शाकाहारी भीड़ आई थी और इकलाख का खून पी गई थी।
इस कांड की पहली जांच जिस इंसपेक्टर ने की थी वो सुबोध कुमार थे। ये ही सुबोध, जिनको शुद्ध शाकाहारी, अहिंसा की पुजारी भीड़ ने पहले पीटकर अधमरा किया और फिर गोली मार दी। सुबोध 28 सितंबर से 9 नवंबर तक जांच अधिकारी रहे थे। इकलाख हत्याकांड में 18 आरोपी जेल भेजे गए थे। इनमें से 10 उस वक्त जेल भेजे गए थे जब सुबोध जारचा के कोतवाली प्रभारी थे।
इकलाख के घर में जो मांस मिला था, उसको लैब तक पहुंचाने में अहम रोल अदा किया था, ताकि ये पता चल सके कि मांस किस पशु का था। लेकिन जांच के बीच में ही सुबोध का ट्रांसफर बनारस कर दिया गया था। इस ट्रांसफर पर सवाल उठे थे।
सुबोध को कैसे मारा गया ?
भीड़ ने हमला किया। बुरी तरह से सुबोध को पीटा गया। साथी पुलिस वाले का कहना है कि साहब बाउंड्री के पास घायल पड़े थे, मैंने उन्हें गाड़ी में लाद लिया, तभी भीड़ चिल्लाती हुई आ गई मारो मारो, सब भागे तो मैं भी अपनी जान बचाकर कूदकर भाग गया।
इसके बाद एक विडियो सब जगह चल रहा है। गाड़ी खेत में खड़ी है। चार पांच लोग नजर आ रहे हैं। एक के हाथ में कुछ है जो इंसपेक्टर की तरफ तान रहा है। एक कहता है लग गई गोली। हाथ में लगी है। कोई पूछता है पुलिसवाले के। एक आवाज आती है ये वो एसओ नहीं। इसके बाद सब भागते हैं।
अब सवाल हैं
1. पुलिस की गाड़ी खेत में कैसे पहुंची, यानी साजिश थी, जो इंसपेक्टर को अलग ले जाकर गोली मारी गई।
2. विडियो में कौन से एसओ की बात दरिंदे कर रहे हैं, किसे मारना चाहते थे? इकलाख हत्याकांड की जांच करने वाले गवाह सुबोध को?
3. इकलाख हत्याकांड के अहम गवाह को मारने से किन लोगों को फायदा होने वाला है? इकलाख के परिजनों को या उन आरोपियों को जिन्हें जेल जाना पड़ा?
4. अगर मान लिया जाए कि गौकशी को लेकर गौरक्षक विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे, तो कौन सा कानून ऐसा है, जो हथियारों के साथ प्रदर्शन करने की इजाजत देता है। एक लड़के और एक पुलिसवाले को गोली लगी है। यानी हथियार लाए गए थे, जो दंगा करना चाहते थे प्रदर्शन नहीं?
5. ये मामला तो हिंदू मुस्लिम नहीं, क्या राजनेता और प्रशासन दोषियों को सख्त सजा दिलाएंगे, जो तमाम कथित गौरक्षकों के लिए नजीर बन सके ?
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