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किशोर होते बच्चों के सोशल मीडिया के साथ जटिल सम्बन्धों की कहानी है, बो बर्नहम द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘एट्थ ग्रेड’। सोशल मीडिया कैसे किशोरावस्था की ओर कदम बढ़ा रहे बच्चों के मानस पर गहरी छाप छोड़ रहा है। उनके व्यक्तित्व की निर्मिति और अस्मिता के गहराते संकट में सोशल मीडिया क्या भूमिका अदा कर रहा है। कुछ इन्हीं प्रश्नों से ‘एट्थ ग्रेड’ हमारा सामना कराती है। यूँ तो यह कहानी कायला की है, पर कायला के जरिए यह फ़िल्म उन करोड़ों बच्चों से खुद को जोड़ती है, जो किसी-न-किसी रूप में सोशल मीडिया के प्रभाव में आ रहे हैं और जिसके नतीजे में इन बच्चों के साथ-साथ समाज के सामने भी बिलकुल अलग चुनौतियाँ उभरकर आ रही हैं।
जैसा कि नाम से जाहिर है यह फ़िल्म आठवीं दर्जे में पढ़ाई कर रही एक लड़की कायला की कहानी है। कायला सोशल मीडिया, फ़ोटो और वीडियो शेयरिंग पर अपने हमउम्र बच्चों की तरह ही सक्रिय है। उसका अपना वीडियो-लॉग भी है। पर कायला जहाँ सोशल मीडिया पर बहिर्मुखी स्वभाव की है, आत्म-विश्वास और ऊर्जा से भरपूर। वहीं असल ज़िंदगी में वह इसके बिलकुल उलट अंतर्मुखी है, भीड़ में भी एकदम अलग-थलग। ‘एट्थ ग्रेड’ आभासी और यथार्थ दुनिया के इसी अंतर्द्वंद्व की कहानी है।
अपने स्नेही और समझदार पिता के साथ रह रही कायला लगातार तनाव में जीती है, उसकी अधूरी आकांक्षाएँ, उनसे उपजने वाली हताशा उसे चिड़चिड़ा भी बनाती हैं। अपने वीडियोज़ में जहाँ कायला दूसरों को दिलासा और प्रेरणा देती है, उनका मनोबल बढ़ाती है, वहीं अपनी निजी ज़िंदगी में वह ख़ुद को टूटता हुआ देखती हैं। कायला के किरदार की यही ‘वल्नरेबिलिटी’ कायला की इस कहानी को इक्कीसवीं सदी में पल-बढ़ रहे करोड़ों बच्चों की कहानी बनाती है।
कायला का किरदार निभाने वाली एल्सी फ़िशर ने बिलकुल सहजता के साथ अभिनय किया है। मानो वह व्यक्तित्व, और किरदार, अंतर्द्वंद्व और तनाव के वे पल कायला के नहीं, ख़ुद एल्सी फ़िशर के ही हों। एल्सी का यह दमदार अभिनय फिल्म ‘लोगन’ में डाफ़्ने कीन के कुछ ऐसे ही सधे हुए अभिनय की भी याद दिलाता है।
‘एट्थ ग्रेड’ के ही मिजाज की एक और हालिया निर्मित फ़िल्म है ‘सर्चिंग’, जिसके निर्देशक हैं अनीश चगंती। ‘सर्चिंग’ अपनी लापता किशोर बेटी की तलाश करते पिता डेविड की कहानी है। अपनी बेटी मार्गट की तलाश में डेविड जब उसके सोशल मीडिया अकाउंट खंगालता है। तो उसका सामना अपनी चिर-परिचित बेटी के व्यक्तित्व से बिलकुल अलग व्यक्तित्व वाली मार्गट से होता है। ‘सर्चिंग’ की एक ख़ास बात यह भी है कि इसमें पूरी फ़िल्म लैपटॉप के स्क्रीन पर ही चलती है, जो शायद हमारे रोज़मर्रा के जीवन में लैपटॉप और मोबाइल के दखल का भी सूचक है। जरूर देखें ये दोनों फिल्में!
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