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फ़ोटो - ANI
वैसे तो एक पत्रकार को भावनात्मक नहीं होना चाहिए लेकिन कुछ खबरें हमें अक्सर किसी के इतने क़रीब पहुँचा देती हैं की भावनाएं अपने आप ज़ाहिर हो ही जाती हैं। आज सुबह एक फ़ोन आया नींद से उठते हुए मैंने हैलो कहाँ और उधर से धीमी सी आवाज़ में एक शख्स ने बस दो लाइन कही और फ़ोन रख दिया। उसने कहाँ 'अली भाई अटैक की वजह से आयेशा का इंतेकाल हो चुका हैं और 2 तारीख़ को उसी का एक प्रोग्राम हैं तो आप घर पहुँच जाइएगा'। धीमी आवाज़ में मुझे ये बताने वाला वो शख़्स आयेशा का पिता था वही आयेशा जो कुछ दिनों पहले मुझे भैय्या कहकर ये कह रही थी की आप चाय पीने फिर से घर ज़रूर आना। मैंने हल्की सी आवाज़ में हाँ कहाँ और फ़ोन रख दिया आगे पूछने की हिम्मत मुझमें नहीं थी क्योंकि आयेशा की कहानी मेरे दिल के बहुत करीब थी और उसे ठीक कराने के लिए मैंने अपने तौर पर कई कोशिशें भी की थी।
कुछ महीने भर पहले मेरी मुलाक़ात उस परिवार से हुई थी दरअसल डॉक्टर ने बताया था की आयेशा की हालत काफ़ी ख़राब हैं और परिवार गरीब होने की वजह से वो खर्च नहीं उठा सकते जिसके बाद केवल उस परिवार को मदद मिल सके इस मक़सद से मैंने ये ख़बर की। मेरी ख़बर पढ़कर मुंबई के एक NGO ने मदद का हाथ भी बढ़ाया और वो इलाज का पूरा खर्च उठाने के लिए तैयार भी हो गए लेकिन वक़्त किसीका नहीं होता जिस बिमारी के लिए इलाज किया जाना था उसकी जगह किसी और बिमारी के चलते ही उसकी मौत हो गई। उस घर से निकलते वक़्त उसके कहे गए वो शब्द सुबह से दिमाग में घूम रहे हैं लेकिन अफ़सोस मैं किसी सवाल का जवाब देने की स्थिती में नहीं था और ना ही दे सकता हूँ।
एक आम परिवार के लिए 4-5 लाख का खर्चा मतलब उनके 2-4 साल की कमाई होती हैं और उतने से खर्च के लिए एक जवान लड़की बरसों एक ही बिस्तर पर पड़ी रही। एक वक़्त अपने स्कूल की मशहूर डांसर कही जानेवाली आयेशा अपने बिस्तर पर हाथ पैर भी नहीं हिला पा रही थी और उसका कारण उसकी बिमारी नहीं बल्कि उसकी ग़रीबी थी क्योंकि डॉक्टर के मुताबिक़ यदि उसका वक़्त पर इलाज हो जाता तो शायद वो ठीक हो सकती थी, डॉक्टर ने भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी आयेशा को अपनी और से मदद करने की लेकिन कोई भी शख़्स एक समय तक ही किसी की मदद कर सकता हैं इसलिए उसे कुछ दिनों तक ज़िंदा रखने तक की ही मदद वो कर सके। मानता हूँ की आयेशा को मुमकिन मदद अंत में मिल चुकी थी लेकिन उस समय तक उसका वक़्त भी समाप्त हो चुका था । मुझे नहीं पता इस हालात में क्या सही हो सकता था लेकिन डॉक्टर की वो एक बात मुझे ज़िंदगी भर याद रहेगी की वक़्त पर इलाज उसकी जान बचा सकता था जो उस गऱीबी की वजह से उसे न मिल पाया।
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