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फूलों सी, कलियों सी कोमल बेटियाँ, माँ का प्यार, पिता की इज्ज़त बेटियाँ
कुल की शान, अभिमान की पगड़ी बेटियाँ, घर-परिवार की आन, मान, शान,जान बेटियाँ।
सीता, सावित्री, दुर्गा सी होती वीरांगना बेटियाँ, आज जीत कर ला रहीं पदक, भारत की बेटियाँ।
सादगी से बड़ी नहीं कोई सुंदरता, अमल करें बेटियाँ, भारतीय संस्कारों को न हरगिज़ भूलें कभी हमारी बेटियाँ।
बेटों से अच्छी होती हैं हमेशा बेटियाँ, फूलों सी, कलियों सी कोमल बेटियाँ।
By - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा।
मुकेश फतेहाबाद आगरा से है। उन्होंने ये प्यारी कविता हमें मेल के जरिए भेजी है। अगर आपके पास भी कोई कविता है जो आपके डायरी में बस तुम तक ही रह जाती है, उस कविता को आप हमें मेल के जरिए hindidakiya@gmail इस पते पर भेज सकते है।
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