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बंगाल पुलिस और सीबीआई के बीच जो तमाशा हुआ, क्या वह टल सकता था? किसकी ग़लती थी?
दरअसल नियम के मुताबिक़ सीबीआई किसी राज्य में जाँच इन तीन शर्तों पर कर सकती है-
1- जब राज्य का मुख्य मंत्री स्वयं यह चाहे।
2- जब हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट सी बी आई को जाँच का आदेश दे।
3 - सी बी आइ स्वतः संज्ञान ले सकती है, पर ऐसे मामले में उसे अपना स्टैंड न्यायालय के सामने वैध सिद्ध करना पड़ता है।
जब मोदी सरकार में अपनी इज़्ज़त लगातार गँवा रही संस्था सी बी आई बंगाल पुलिस में राजीव कुमार की जाँच के लिए घुसी, उसने इन तीन में से कुछ भी फालो नहीं किया।
सीबीआई का कहना है कि राजीव कुमार चिट फ़ंड घोटाले के पूर्व जाँच करता रहे हैं और उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ है, इस सिलसिले में वह उनसे पूछतांछ करना चाहती है।सी बी आई का यह भी कहना है कि राजीव कुमार इस मामले में सबूत मिटाने की कोशिश भी कर रहे हैं।
यदि ऐसा हो रहा था तो क्या सी बी आई के पास राज्य में जा कर डायरेक्ट पूछतांछ करने के अलावा कोई और रास्ता था? एक बहुत सिंपल सा रास्ता था।सी बी आइ सुप्रीम कोर्ट में एक अर्ज़ी दे सकती थी कि उसके पास ख़बर है की राजीव कुमार दस्तावेज़ मिटा रहे है या फिर इस घोटाले के सिलसिले में उनसे जाँच ज़रूरी है। सी बी आइ को दो दिन से भी कम वक़्त में यह छूट मिल जाती और इतना हंगामा खड़ा नहीं होता।
इस रास्ते को जान बूझ कर नज़रंदाज़ किया गया ताकि चुनाव से पहले हाइप क्रियेट की जा सके। शारदा घोटाले और रोज़ बैली घोटाले में जो पैसा लोगों का फँसा है,उसकी वापसी में किसी की दिलचस्पी नहीं है। सबकी दिलचस्पी लोकसभा चुनाव में है।
समझ रहे हैं न आप।
By - आशुतोष तिवारी
आशुतोष एक स्वतंत्र विचारक और लेखक है।
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