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संसद में चीख चीखकर खुद को जवानों का हमदर्द साबित कर कांग्रेस को गद्दार साबित करने की कोशिश करते प्रधानमंत्री को सबने देखा है। हमने देश के गृहमंत्री को भी सेना के बूते पाकिस्तान को ललकार कर वोट पटाते देखा है। हमने देश की रक्षामंत्री को भी सेना का नाम लेकर विपक्ष के हमलों से बचते देखा है लेकिन इतने हमदर्दों को बावजूद CRPF की सुनवाई ना होना हैरान करता है।
अब एक खुलासा द क्विंट की रिपोर्ट से हुआ है और अगर ये सच है तो भक्ति की बूटी खाकर बौराये भक्तों को इस सरकार से सवाल करना चाहिए।
एक सीनियर अधिकारी ने बताया है कि CRPF ने इस हफ्ते की शुरुआत में गृह मंत्रालय से एयर ट्रांजिट की मांग की थी लेकिन उनके निवेदन को नजरअंदाज कर दिया गया। ये तब है जब लगतार हमारे सैन्यबलों पर आतंकी हमले होते रहे हैं। साथ ही खुफिया रिपोर्ट थी कि ऐसे हमले होने की आशंका है।
दरअसल जम्मू में बर्फबारी के चलते कई जवान फंस गए थे। पिछले काफिले ने 4 फरवरी को यात्रा शुरू की थी और इसलिए अधिकारियों ने CRPF हेडक्वार्टर को एयर ट्रांजिट के लिए रिक्वेस्ट भेजी। वो रिक्वेस्ट गृह मंत्रालय के पास बढ़ा दी गई मगर हुआ कुछ नहीं। जवाब भी देने की ज़रूरत नहीं समझी गई तो इसी बात से समझ लीजिए कि गृहमंत्री जी घाटी जैसी संवेदनशील जगह पर तैनात CRPF को कितनी तवज्जो देते हैं।
ज़ाहिर है, बर्फबारी के दौरान जवानों को हवाई रास्ते से ले जाना कम खर्च का सुरक्षित तरीका था जिसमें वक्त भी कम लगता और हमले का रिस्क भी कम होता मगर पहले भी ऐसी रिक्वेस्ट को नकारा गया है तो इस बार भी क्यों सुना जाता। साफ है, गृहमंत्रालय ने जवानों को आतंकियों के रहमोकरम पर छोड़ रखा है।
मेरा सवाल इतना भर है कि सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय अगर आप लेंगे तो हमारे जवानों की ऐसी दर्दनाक मौत की वजह बनी लापरवाही की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
यह लेख नितिन ठाकुर की वॉल से ली गयी है। नितिन ठाकुर एक पत्रकार है जो TV9 भारतवर्ष में नौकरी कर रहे है।
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