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By - डाकिया राकेश
एक वक्त था जब हम चंद रुपए (सिक्के) लेकर खूब धूमधाम से होली मनाया करते थे, मानो जैसे हमने इन चंद सिक्कों के बदौलत सारे (विभिन्न प्रकार के रंग) गुलाल खरीद लिये हो और उसे सारे मोहल्ले में फेर देंगे।
पर आज शायद सब बदल गया है। मानो उस वक्त हम इस जहां की शर्म हया से दूर किसी और जहां में होकर होली का पावन त्यौहार मनाते थे। और पूरा दिन बाहर ही रह कर दोस्तों के साथ काले/पीले होकर जब घर लौटते थे दोपहर को तब मां की डांट भी पड़ती थी फिर वही मां हमें नहलाकर कपड़े पहनाती थी।
हां हां बस इतना ही नहीं, हमारी होली कुछ इस तरह होती थी मानो जैसे उस दिन हम अपने सारे दोस्तों के साथ एक टब में गुलाल डालकर सभी दोस्त एक साथ पिचकारी भर कर चल देते थे अपने अपने मोहल्ले की और, और फिर और फिर क्या जिसे देखा साफ सुथरे कपड़ों में बोल दिया उस पर हल्ला हां जनाब हम कुछ इस तरह ही होली खेला करते थे।
हां माना कि वह व्यक्ति हमें पलटकर गालियां भी देता था कई बार, पर हम भी थे छोटे से शरारती पकड़ में कहां आते किसी के।
मेरी कहानी कुछ सन 2001 की है उस वक्त मेरा राजन नाम का एक दोस्त हुआ करता था वैसे तो दोस्त कई और भी थे पर इसकी बात ही कुछ अलग थी। हम साथ में होली खेला करते थे संजय के पिता जी उस वक्त व्यवसायिक थे। तो उसे होली पर ₹30 मिलते थे और मुझे मेरे घर से सिर्फ ₹5 ही। पर राजन ने मुझे कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया। हम दोनों एक साथ दुकान पर जाकर गुलाल लेते थे और फिर एक ही टब में उसे डाल कर अपने सारे दोस्तों के साथ शेयर किया करते थे।
यह तो थी मेरी इस वक्त की कहानी आज माहौल देख कुछ अजीब सा लगता है मानो जैसे कुछ डर सा लगता है अब। वह मासूम से बच्चे वह हाथों में पिचकारी या मानो जैसे वक्त के साथ सब कुछ बदल सा गया है।
लोग बदल गए, वक्त बदल गया, मानो जैसे सोच भी बदल गई हो लोगों की, अब लोग ना ही उस तरह गुलाल से खेलते हैं और ना ही हमारी तरह मिल बांटकर।
जैसा मैंने देखा था पिछले वर्ष सन 2018 में लोग शराब पीकर, गाली गलौज देकर, गुलाल के बदले केमिकल से बने रंग, ऑयल पेंटस् तथा अंडे एक दूसरे पर फोड़ कर, एक दूसरे के कपड़े फाड़कर होली का त्यौहार मनाते हैं बहुत बुरा लगा उस वक्त यह दृष्य देखकर की वक्त सच में बदल चुका है।
मेरा पाठकों से यही संदेश है कि कृपया इस बार फिर इतिहास दोहराया जाए और बगैर केमिकल से बने रंगों का इस्तेमाल कर वातावरण को भी दूषित होने से बचाएं तथा हमारे संस्कृति को भी जिंदा रखें।
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