- Get link
- Other Apps
- Get link
- Other Apps
By - डाकिया पर शांत
रांझणा फिल्म तो सभी ने देखी होगी और जिसनें नहीं देखी है वो अभी जा कर देखें लें। क्योंकि ये फिल्म है कमाल की। इस फिल्म में धनुष ने जिस तरह से अपने किरदार को पकड़ रखा है उसके लिए शब्द नहीं है। लेकिन अब आप नीचे दिए हुए कंटेंट पर अपना ध्यान ले जाइये। ये यहाँ क्यों है और इसका रांझणा फिल्म से क्या सबंध है।
अगर आपने फिल्म देखी है तो आपको ये समझने में तनिक भी कष्ट नहीं होगा।
रांझणा फिल्म के अंत में कुंदन जब अस्पताल में मर रहा होता है तब जोया उसके पास जाती है और रोने लगती है। ये देख कुंदन अपने अंदाज में डायलॉग बोलता है और मर जाता है। यहाँ क्लिक कर फिल्म का आखरी सीन देखें।
इसी सीन के डायलॉग के तर्ज पर शहरों में दफ्तर जाने वालों के लिए एक कविता लिखी गयी है। दफ्तर जाने वालों के लिए मंडे यानी कि सोमवार कैसा होता है...
( MONDAY is like... )
मेरे अलार्म का Snooze बटन या तो समय पर उठा सकता है या तो मुझे लेट करा सकता है,
पर साला अब उठे कौन,
कौन मेहनत करे
नहाने को...
चाय बनाने को...
कोई तो आवाज़ देकर रोक लो,
बोल दो आज Sunday है...
ये जो मोबाइल मुर्दा से पड़ा है बगल में...
'बन्द हो जाए, तो महादेव की कसम वापस सो जाएंगे'
पर नहीं... अब साला मूड नहीं है...
आंखे खोल लेने में ही सुख है,
ऑफिस जाने में भलाई...
क्योंकि उठना है,
Weekdays में डमरू सा बजने को, प्लेटफॉर्म पर दौड़ लगाने को, फिर से मेट्रो के धक्के खाने को...
रांझणा फिल्म तो सभी ने देखी होगी और जिसनें नहीं देखी है वो अभी जा कर देखें लें। क्योंकि ये फिल्म है कमाल की। इस फिल्म में धनुष ने जिस तरह से अपने किरदार को पकड़ रखा है उसके लिए शब्द नहीं है। लेकिन अब आप नीचे दिए हुए कंटेंट पर अपना ध्यान ले जाइये। ये यहाँ क्यों है और इसका रांझणा फिल्म से क्या सबंध है।
अगर आपने फिल्म देखी है तो आपको ये समझने में तनिक भी कष्ट नहीं होगा।
रांझणा फिल्म के अंत में कुंदन जब अस्पताल में मर रहा होता है तब जोया उसके पास जाती है और रोने लगती है। ये देख कुंदन अपने अंदाज में डायलॉग बोलता है और मर जाता है। यहाँ क्लिक कर फिल्म का आखरी सीन देखें।
इसी सीन के डायलॉग के तर्ज पर शहरों में दफ्तर जाने वालों के लिए एक कविता लिखी गयी है। दफ्तर जाने वालों के लिए मंडे यानी कि सोमवार कैसा होता है...
( MONDAY is like... )
मेरे अलार्म का Snooze बटन या तो समय पर उठा सकता है या तो मुझे लेट करा सकता है,
पर साला अब उठे कौन,
कौन मेहनत करे
नहाने को...
चाय बनाने को...
कोई तो आवाज़ देकर रोक लो,
बोल दो आज Sunday है...
ये जो मोबाइल मुर्दा से पड़ा है बगल में...
'बन्द हो जाए, तो महादेव की कसम वापस सो जाएंगे'
पर नहीं... अब साला मूड नहीं है...
आंखे खोल लेने में ही सुख है,
ऑफिस जाने में भलाई...
क्योंकि उठना है,
Weekdays में डमरू सा बजने को, प्लेटफॉर्म पर दौड़ लगाने को, फिर से मेट्रो के धक्के खाने को...
Comments
Post a comment