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इनका नाम नसीमा हैं जो अपनी बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती थीं । इनसे मिलने के लिए इनके पति रोज़ आते और ICU के बाहर इंतज़ार करते रहते थे।
एक रविवार डाक्टर ने इजाज़त दी , की नसीमा के पति अपनी बीवी को कुछ देर बाहर तफ़री के लिए ले जा सकते हैं। ये साहब अपनी पत्नी को बाहर टहलाने ले आये और बिना किसी हिचक और शर्म के अपने हाथ में यूरिन बैग पकड़ लिया।
आज के समय में जब लोग अपनी मुहब्बत को अपना हाथ देने से कतराते हैं , इस बंदे ने हाथ में जो पकड़ा हुआ है वो कोई ऐसा बन्दा ही पकड़ सकता है जिसने बिना शर्त प्यार किया हो।
आज के दौर में जब लोग साथ ना दे पाने के सौ कारण दे देते हैं वहाँ इस जैसा एक बन्दा हर हालत में साथ देने का बस एक कारण देता है औऱ वो कारण है सच्ची मुहब्बत। बस दुआ है कि इस दुनिया मे ऐसी मुहब्बतें ज़िंदा रहें। ये मोहब्बतें ही हैं जो ज़िंदगी भर की दुआ बनकर साथ चलती हैं।
वो प्यार जो मैं इनकी आँखों में देख पा रही हूँ वो अद्भुत है। क्या होता है साथ निभाना ? क्या होता है प्रेम ? बस वही सुकून जो इस वक़्त इस बंदे की आँखों में दिखाई से रहा है। ये सुकून ही मुहब्बत है।
इनके चेहरे पे जो रूहानी इश्क़ दिख रहा है ना ! उसके लिए कोई अभिव्यक्ति नहीं है। प्यार , बहुत सारे वादों के क़सीदे नहीं पढ़ता । प्यार , मजबूरियों के गाने भी नहीं गाता। प्यार बस साथ नहीं छोड़ता, हाथ नहीं छोड़ता। बंद कमरे के अंदर प्यार को अस्तित्व नहीं मिलता है। प्यार को अस्तित्व मिलता है उसके स्वीकार पर उसके सम्मान पर।
प्रेम करने वाले के चेहरे पर अपने प्यार के लिए मान होता है , सम्मान होता है और एक अलग सा लाड़ होता है। गोद में सर रखकर सोने में सुकून होता है।
बरहाल ये बंदा इश्क़ की सारी तहरीरों और दावों से जुदा जिस प्यार से अपनी साथी को देख रहा है बस वही इक नज़र बहुत है उम्र भर के लिए।
इन साहब के चेहरे के भाव देखिये और उस लड़की के भाव भी देखिये। इनको देखकर मैं कह सकती हूँ कि
" हाँ मैंने इश्क़ का चेहरा देखा है।
हाँ , मैंने इश्क़ को इश्क़ करते देखा है "
ऐसी आत्मिक और निहायत ही रूहानी इक नज़र के लिए उम्र भर तरसते मुझ जैसे जाने कितनों की तलाश अभी जारी है।
-निधि नित्या
- हिमांशु कुमार की फेसबुक वॉल से
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